Tuesday, September 21, 2010

First Time Sex Tips

First Time Sex Tips
Sex is a part of a lasting relationship. Men and women alike need an outlet for their emotions, and there’s no better one than love making. Sex makes you feel connected with your partner in the most intimate way possible.
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कंगना की समस्या

कंगना की समस्या
कंगना को उनकी कुछ फिल्मों में तो नर्वस किरदारों में दर्शाया ही जा चुका है, लेकिन इस बार उनके साथ रियल लाइफ में शूट करते हुए भी ऐसी स्थिति बन गई।

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लेटलतीफ सोनम

लेटलतीफ सोनम
अनीस बज्मी ने पिछले दिनों अपनी आगामी फिल्म 'थैंक यू की शूटिंग पूरी क्रू के साथ कनाडा में निपटाई। खबर है कि इस शिड्यूल पर सोनम कपूर को लेकर सबकुछ ठीक नहीं रहा।

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जज बनीं चित्रांगदा

जज बनीं चित्रांगदा
चित्रांगदा सिंह ने 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी से जब बॉलीवुड में पदार्पण किया, तो अपने आकर्षण और अभिनय प्रतिभा के बल पर सभी को दांतों तले अंगुलियों दबाने पर मजबूर कर दिया था।

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टीचर बनीं बिपाशा

टीचर बनीं बिपाशा
सेक्स सिंबल बिपाशा बसु 'लम्हा में नॉन ग्लैमरस रोल निभाने के बाद अब प्रियदर्शन निर्देशित फिल्म 'आक्रोश में स्कूल टीचर की भूमिका में नजर आएंगी, लेकिन बिपाशा साफ करती हैं कि अपनी सेक्सी इमेज से बाहर निकलने का उनका कोई इरादा नहीं है।

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बड़बोली मल्लिका

बड़बोली मल्लिका
मल्लिका शेरावत अपने 'हॉलीवुड प्रोजेक्ट्स को लेकर काफी लंबे समय से बॉलीवुड से गायब हैं। हालांकि गाहे-बगाहे उनके एक ही हॉलीवुड प्रोजेक्ट 'हिस्स की ही चर्चा होती रहती है।

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पति से भी पहले पेट्स

पति से भी पहले पेट्स
भारतीय मूल के व्यवसायी अरुण नायर की पत्नी ब्रिटिश अभिनेत्री लिज हर्ले ने खुलासा किया कि वे सुबह उठकर पति को गुडमॉर्निंग कहने से पहले अपने डॉगी को किस करती हैं।

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बीन को बढ़ती उम्र का टेंशन

बीन को बढ़ती उम्र का टेंशन
मिस्टर बीन बनकर लोगों को हंसाने वाले रोवान एटकिंसन 20 साल पुराने इस किरदार को दोबारा निभाने से कतरा रहे हैं। यह बात उन्होंने हॉलीवुड फिल्म 'फोर वेडिंग्स एंड ए फ्यूनरल के निर्माता रिचर्ड कर्टिस से कही, जिन्होंने मिस्टर बीन किरदार की रचना की थी।

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समुद्र में डाल दें प्लास्टिक

समुद्र में डाल दें प्लास्टिक
नॉर्थ पैसिफिक में बहने वाले एक बड़े शहर के बराबर प्लास्टिक कचरे को द ग्रेट गारबेज पैच कहा जाता है। इसी पैच पर काम करते हुए वैज्ञानिक केत्सुहिको साइडो की टीम ने एक नया तथ्य वैज्ञानिकों के सामने रखा है।

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ये है सबसे बड़ी चॉकलेट


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घर में रखते हैं भेडिए

घर में रखते हैं भेडिए
भेडिए जैसे डरावने और जंगली जानवर से दोस्ती करने वालों से मिलना चाहें तो लॉस एंजिल्स से कुछ घंटे की ड्राइव पर स्थित स्टूडियो सिटी पहुंच जाएं। यहां पॉल पोंडेला और उनकी पार्टनर कोलेट डुवाल ने जानवरों, खासतौर पर भेडिय़ों के लिए तमाम सुविधाएं जुटा रखी हैं।
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सिलवाने की जरूरत नहीं, बस स्प्रे किया और हो गई टी-शर्ट तैयार

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Monday, September 20, 2010

Why Do Weak Erections Occur?

Why Do Weak Erections Occur?
Erectile dysfunction is the major problem these days faced by men. Erectile dysfunction is that man cannot erect his male sexual organ sufficient when he is performing sexual intercourse.



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5 Ways to Make Sex Sexier

5 Ways to Make Sex Sexier
A good sex life takes time. Also efforts to maintain it. It won't always be easy our busy lives are taxing and often leave us tired and devoid of the imagination and motivation required to keep up the pace.

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चार कप कॉफी बचाएगी गठिया से

चार कप कॉफी बचाएगी गठिया से
एक दिन में चार कप कॉफी का सेवन गठिया से पीडित महिलाओं के लिए लाभकारी साबित हो सकता है।

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अमृता की दरियादिली

अमृता की दरियादिली
अमृता राव इन दिनों काफी व्यस्त हैं, लेकिन व्यस्तता के बावजूद वह नेक काम से कभी पीछे नहीं हटतीं। इसी के चलते जब एक एनजीओ ने अपने लिए फंड जुटाने हेतु अमृता से सहयोग मांगा तो वह इसके लिए तुरंत तैयार हो गईं।
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सिलवाने की जरूरत नहीं, बस स्प्रे किया और हो गई टी-शर्ट तैयार

Friday, September 10, 2010

मुन्नी बदनाम हुई

मुन्नी बदनाम हुई
मुन्नी बदनाम हुई फिल्म दबंग का यह गाना हर किसी की जुबान पर है। इसमें भी दो मत नहीं कि इसने मलाइका के लिए बॉलीवुड में एक नई पारी के रास्ते भी खोले हैं। बॉलीवुड के सूत्र बताते हैं कि मलाइका पर फिल्माए गए इस गाने के बोल का श्रेय मधुर भंडारकर को जाता है। म्यूजिक कंपोजर जतिन पंडित कहते हैं कि मधुर भंडारकर की बात-बात पर झंडु बाम बोलने की बहुत आदत है। यही सुनकर उन्हें लगा कि इन शब्दों को गीत में जरूर शामिल करना चाहिए।
ललित यह भी बताते हैं कि यह गाना हमेशा से ही मलाइका अरोड़ा-खान को जहन में रखकर लिखा गया था। उनके अनुसार इस गाने पर मलाइका से अच्छा कोई परफॉर्म नहीं कर सकता था। ललित इस बात की गहराई में जाते हुए बताते है, 'मलाइका इस गाने की रचनात्मक प्रक्रिया का भी हिस्सा थीं। इसका संगीत भले ही मैंने तैयार किया हो लेकिन गीत को लिखने के दौरान अरबाज, मलाइका और सलमान सभी स्टूडियो में मौजूद थे और हंसी मजाक के बीच इसे फाइनल किया गया। एक बात को लेकर सभी एकमत थे वह यह कि झंडु बाम शब्द को जरूर शामिल किया जाना चाहिए। मलाइका ने इन शब्दों पर जो परफॉर्मेंस दिया है वह शानदार है। नृत्य निर्देशन के बहुत पहले इसके फिल्मांकन के बारे में कुछ बातें तय हो चुकी थीं। इस बारे में मलाइका का कहना है कि वे बहुत खुश हैं कि लोगों को यह गाना पसंद आया है, मैंने जब पहली बार इसके बोल सुने तभी अंदाज हो गया था कि यह लोगों को पसंद आएगा।

सोनाक्षी का पहला प्यार


फिल्म दबंग के जरिए बॉलीवुड में डेब्यू करने जा रहीं नवोदित अदाकारा सोनाक्षी सिन्हा का पहला प्यार एक्टिंग नहीं, बल्कि कुछ और है। यह क्या है, आप खुद ही जान लीजिए।
फिल्म दबंग से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने जा रही सोनाक्षी सिन्हा को अभी से इंडस्ट्री वालों ने स्टार मटेरियल कहना शुरू कर दिया है। ज्यादातर लोगों को शायद पता नहीं है कि सोनाक्षी का सपना एक्टिंग में नाम कमाना नहीं, बल्कि कुछ और है। बचपन से ही सोनाक्षी की तमन्ना कामयाब फैशन डिजाइनर के तौर पर पहचान बनाने की है। वे कहती हैं कि फैशन डिजाइनिंग मेरा पहला प्यार है। मैंने मुंबई के एसएनडीटी कॉलेज में तीन साल फैशन डिजाइनिंग और स्टाइलिंग की पढ़ाई की है। मुझे नहीं पता कि एक्टिंग के साथ मैं अपने इस सपने को कैसे पूरा कर पाऊंगी।
सोनाक्षी वर्ष 2005 में आई फिल्म मेरा दिल लेके देखो के कॉस्ट्यूम डिजाइन कर चुकी हैं। वह आगे भी ऐसा करना चाहती हैं। इस बारे में उनका कहना है कि वे नहीं जानती कि बॉलीवुड में कितने लोग ऐसा करते हैं, लेकिन वे अपनी ड्रेसेस की डिजाइनिंग खुद ही करना चाहती हैं।

O My Lord GANESHA Aap Rehna Saath Hamesha




By Sri Swami Sivananda

SALUTATIONS to Lord Ganesha who is Brahman Himself, who is the Supreme Lord, who is the energy of Lord Shiva, who is the source of all bliss, and who is the bestower of all virtuous qualities and success in all undertakings.
Mushikavaahana modaka hastha,
Chaamara karna vilambitha sutra,
Vaamana rupa maheshwara putra,
Vighna vinaayaka paada namasthe
MEANING: "O Lord Vinayaka! the remover of all obstacles, the son of Lord Shiva, with a form which is very short, with mouse as Thy vehicle, with sweet pudding in hand, with wide ears and long hanging trunk, I prostrate at Thy lotus-like Feet!"
Ganesh Chaturthi is one of the most popular of Hindu festivals. This is the birthday of Lord Ganesha. It is the day most sacred to Lord Ganesha. It falls on the 4th day of the bright fortnight of Bhadrapada (August-September). It is observed throughout India, as well as by devoted Hindus in all parts of the world.
Clay figures of the Deity are made and after being worshipped for two days, or in some cases ten days, they are thrown into water.
Lord Ganesha is the elephant-headed God. He is worshipped first in any prayers. His Names are repeated first before any auspicious work is begun, before any kind of worship is begun.
He is the Lord of power and wisdom. He is the eldest son of Lord Shiva and the elder brother of Skanda or Kartikeya. He is the energy of Lord Shiva and so He is called the son of Shankar and Umadevi. By worshipping Lord Ganesha mothers hope to earn for their sons the sterling virtues of Ganesha.
The following story is narrated about His birth and how He came to have the head of an elephant:
Once upon a time, the Goddess Gauri (consort of Lord Shiva), while bathing, created Ganesha as a pure white being out of the mud of Her Body and placed Him at the entrance of the house. She told Him not to allow anyone to enter while she went inside for a bath. Lord Shiva Himself was returning home quite thirsty and was stopped by Ganesha at the gate. Shiva became angry and cut off Ganesha's head as He thought Ganesha was an outsider.
When Gauri came to know of this she was sorely grieved. To console her grief, Shiva ordered His servants to cut off and bring to Him the head of any creature that might be sleeping with its head facing north. The servants went on their mission and found only an elephant in that position. The sacrifice was thus made and the elephant's head was brought before Shiva. The Lord then joined the elephant's head onto the body of Ganesha.
Lord Shiva made His son worthy of worship at the beginning of all undertakings, marriages, expeditions, studies, etc. He ordained that the annual worship of Ganesha should take place on the 4th day of the bright half of Bhadrapada.
Without the Grace of Sri Ganesha and His help nothing whatsoever can be achieved. No action can be undertaken without His support, Grace or blessing.
In his first lesson in the alphabet a Maharashtrian child is initiated into the Mantra of Lord Ganesha, Om Sri Ganeshaya Namah. Only then is the alphabet taught.
The following are some of the common Names of Lord Ganesha: Dhoomraketu, Sumukha, Ekadantha, Gajakarnaka, Lambodara, Vignaraja, Ganadhyaksha, Phalachandra, Gajanana, Vinayaka, Vakratunda, Siddhivinayaka, Surpakarna, Heramba, Skandapurvaja, Kapila and Vigneshwara. He is also known by many as Maha-Ganapathi.
His Mantra is Om Gung Ganapathaye Namah. Spiritual aspirants who worship Ganesha as their tutelary Deity repeat this Mantra or Om Sri Ganeshaya Namah.
The devotees of Ganesha also do Japa of the Ganesha Gayatri Mantra. This is as follows.
Tat purushaaya vidmahe
Vakratundaaya dheemahi
Tanno dhanti prachodayaat.
Lord Ganesha is an embodiment of wisdom and bliss. He is the Lord of Brahmacharins. He is foremost amongst the celibates.
He has as his vehicle a small mouse. He is the presiding Deity of the Muladhara Chakra, the psychic centre in the body in which the Kundalini Shakti resides.
He is the Lord who removes all obstacles on the path of the spiritual aspirant, and bestows upon him worldly as well as spiritual success. Hence He is called Vigna Vinayaka. His Bija Akshara (root syllable) is Gung, pronounced to rhyme with the English word "sung". He is the Lord of harmony and peace.
Lord Ganesha represents Om or the Pranava, which is the chief Mantra among the Hindus. Nothing can be done without uttering it. This explains the practice of invoking Ganesha before beginning any rite or undertaking any project. His two feet represent the power of knowledge and the power of action. The elephant head is significant in that it is the only figure in nature that has the form of the symbol for Om.
The significance of riding on a mouse is the complete conquest over egoism. The holding of the ankusha represents His rulership of the world. It is the emblem of divine Royalty.
Ganesha is the first God. Riding on a mouse, one of nature's smallest creatures and having the head of an elephant, the biggest of all animals, denotes that Ganesha is the creator of all creatures. Elephants are very wise animals; this indicates that Lord Ganesha is an embodiment of wisdom. It also denotes the process of evolution--the mouse gradually evolves into an elephant and finally becomes a man. This is why Ganesha has a human body, an elephant's head and a mouse as His vehicle. This is the symbolic philosophy of His form.
He is the Lord of Ganas or groups, for instance groups of elements, groups of senses, etc. He is the head of the followers of Shiva or the celestial servants of Lord Shiva.
The Vaishnavas also worship Lord Ganesha. They have given Him the name of Tumbikkai Alwar which means the divinity with the proboscis (the elephant's trunk).
Lord Ganesha's two powers are the Kundalini and the Vallabha or power of love.
He is very fond of sweet pudding or balls of rice flour with a sweet core. On one of His birthdays He was going around house to house accepting the offerings of sweet puddings. Having eaten a good number of these, He set out moving on His mouse at night. Suddenly the mouse stumbled--it had seen a snake and became frightened--with the result that Ganesha fell down. His stomach burst open and all the sweet puddings came out. But Ganesha stuffed them back into His stomach and, catching hold of the snake, tied it around His belly.
Seeing all this, the moon in the sky had a hearty laugh. This unseemly behaviour of the moon annoyed Him immensely and so he pulled out one of His tusks and hurled it against the moon, and cursed that no one should look at the moon on the Ganesh Chaturthi day. If anyone does, he will surely earn a bad name, censure or ill-repute. However, if by mistake someone does happen to look at the moon on this day, then the only way he can be freed from the curse is by repeating or listening to the story of how Lord Krishna cleared His character regarding the Syamantaka jewel. This story is quoted in the Srimad Bhagavatam. Lord Ganesha was pleased to ordain thus. Glory to Lord Ganesha! How kind and merciful He is unto His devotees!
Ganesha and His brother Lord Subramanya once had a dispute as to who was the elder of the two. The matter was referred to Lord Shiva for final decision. Shiva decided that whoever would make a tour of the whole world and come back first to the starting point had the right to be the elder. Subramanya flew off at once on his vehicle, the peacock, to make a circuit of the world. But the wise Ganesha went, in loving worshipfulness, around His divine parents and asked for the prize of His victory.
Lord Shiva said, "Beloved and wise Ganesha! But how can I give you the prize; you did not go around the world?"
Ganesha replied, "No, but I have gone around my parents. My parents represent the entire manifested universe!"
Thus the dispute was settled in favour of Lord Ganesha, who was thereafter acknowledged as the elder of the two brothers. Mother Parvati also gave Him a fruit as a prize for this victory.
In the Ganapathi Upanishad, Ganesha is identified with the Supreme Self. The legends that are connected with Lord Ganesha are recorded in the Ganesha Khanda of the Brahma Vivartha Purana.
On the Ganesh Chaturthi day, meditate on the stories connected with Lord Ganesha early in the morning, during the Brahmamuhurta period. Then, after taking a bath, go to the temple and do the prayers of Lord Ganesha. Offer Him some coconut and sweet pudding. Pray with faith and devotion that He may remove all the obstacles that you experience on the spiritual path. Worship Him at home, too. You can get the assistance of a pundit. Have an image of Lord Ganesha in your house. Feel His Presence in it.
Don't forget not to look at the moon on that day; remember that it behaved unbecomingly towards the Lord. This really means avoid the company of all those who have no faith in God, and who deride God, your Guru and religion, from this very day.
Take fresh spiritual resolves and pray to Lord Ganesha for inner spiritual strength to attain success in all your undertakings.
May the blessings of Sri Ganesha be upon you all! May He remove all the obstacles that stand in your spiritual path! May He bestow on you all material prosperity as well as liberation!

ये वापसी भी क्या वापसी है

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

अगर ओबामा की जगह बुश होते तो अमेरिका के लिए कहा जाता कि ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले’ | एराक से निकलना कोरिया और वियतनाम से भी बदतर ही रहा, हालांकि वहां बहुत ज्यादा अमेरिकी मारे गए थे| एराक में बुश क्यों घुसे थे, यह आज तक स्पष्ट नहीं हो पाया| क्या एक भी सर्वनाशकारी हथियार एराक़ में आज तक मिल पाया ? इन्हीं हथियारों का बहाना बनाकर बुश घुसे थे| अमेरिका ने अपने पांच हजार जवान मरवा दिए, लगभग पांच लाख करोड़ रू. नाली में बहा दिये, डेढ़ लाख एराकी मर गए, एराकी समाज छिन्न-भिन्न हो गया, इसके बावजूद लाखों अमेरिकी सैनिक एराक में अपनी उपस्थिति का औचित्य नहीं ठहरा पाए| बुश की सबसे बड़ी उपलब्धि यही रही कि उन्होंने सपाम हुसैन को अपदस्थ किया और उनकी हत्या कर दी| बुश इसे अपनी बहादुरी समझते रहे लेकिन सारी दुनिया में इस घटना ने उनकी मूर्खता का सिक्का जमा दिया| एराक़ को लेकर अमेरिका के विरूद्घ जितने प्रदर्शन दुनिया में हुए, आज तक किसी भी राष्ट्र के विरूद्घ नहीं हुए| कोरिया और वियतनाम में घुसने का औचित्य सिद्घ करने के लिए कुछ तर्क अभी भी अमेरिका देता रहता है लेकिन एराक़ में घुसने को वह कभी भी उचित सिद्घ नहीं कर पाएगा| गनीमत है कि बुश अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति हैं| यदि वे किसी अफ्रीकी या पूर्वी यूरोपीय देश के नेता होते तो उनके सद्दामीकरण की मांग भी उठती| ऐसे में ओबामा द्वारा की गई अमेरिकी वापसी पर दुनिया संतोष की सांस ले रही है| लेकिन वह यह भी पूछ रही है कि ये वापसी भी क्या वापसी है ?
ओबामा ने उनकी वापसी की घोषणा तो कर दी है लेकिन क्या सचमुच हमें इसे वापसी कह सकते हैं ? अब भी लगभग 50 हजार अमेरिकी जवान एराक़ में डटे हुए हैं| कहा जा रहा है कि उन्हें दिसंबर 2011 तक वापस बुलाया जा सकता है| इस बारे में पक्की बात कोई नहीं बोल रहा है| न ओबामा, न हिलेरी और न ही गेट्रस ! सबको पता है कि अमेरिका जिस हाल में एराक़ को छोड़कर जा रहा है, वह 1947 के भारत से भी बदतर है| शिया, सुन्नी और कुर्द तो आपस में भिड़ते ही रहते हैं, अमेरिका-विरोधी लहर अभी भी थमी नहीं है| इस समय एराक में अमेरिकी दूतावास और उसकी शाखाओं तथा दर्जनों सैन्य अड्डों की रखवाली करने के लिए हजारों सैनिकों की जरूरत है| यह नाजुक काम एराक़ी जवानों को नहीं सौंपा जा सकता, क्योंकि औसत एराकि़यों के मन में अमेरिका के प्रति कृतज्ञता का कोई भाव नहीं है, उनके दिल में भी नहीं, जिन्हें अमेरिकी कब्जे से सीधा राजनीतिक या वित्तीय लाभ भी मिला है| पेंटगॉन ने हाल ही में घोषणा की है कि वह एराक़ में अतिरिक्त हेलिकॉप्टर और अन्य सैन्य साजो-सामान भिजवानेवाला है| इसमें शक नहीं है कि पिछले सात साल में एराक़ में जितनी हिंसा अक्सर होती रही है, उसके मुकाबले अब हालात बेहतर हैं लेकिन अब भी लगभग एक लाख सुरक्षा-ठेकेदार और हजारों गैर-सरकारी विदेशी जवान एराक़ में सकि्रय हैं| पिछले सात वर्षों में अनेक अमेरिकी कंपनियों ने एराक़ में अपना जो लंबा-चौड़ा जाल बिछाया है, उसे एराक़ी जवानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता| यदि एराक़ में अमेरिकी ‘ऑपरेशन फ्रीडम’ सफल हुआ होता तो क्या ऐसी नौबत आती ?
एराक़ को अगर अमेरिका सेंत-मेत में खाली कर दे तो सचमुच दुनिया को बहुत आश्चर्य होगा| बुश की नासमझी के कारण जो अरबों डॉलर वहां बर्बाद हुए, उन्हें निकालने की कोशिश अमेरिका जरूर करेगा| वह एराक़ी तेल पर तो कब्जा करेगा ही, वह यह भी चाहेगा कि चीन जैस राष्ट्र एराक़ी तेल का फायदा न उठा सकें| अमेरिका की हरचंद कोशिश होगी कि बगदाद की गद्दी पर जो भी बैठे, वह आगामी कुछ वर्षों तक उसकी कठपुतली बना रहे| उसकी यह इच्छा तभी पूरी हो सकती है, जबकि वह एराक़ में अपनी फौजी और राजनीतिक उपस्थिति बनाए रखे| एराकी सेनापति बबरक-ज़ावरी ने तो दो-टूक शब्दों में कहा है कि अमेरिकी फौजों को एराक़ में कम से कम अगले दस साल तक अवश्य जमे रहना चाहिए| उन्हें तभी लौटना चाहिए जबकि एराकी फौजें अपने पांव पर खड़ी हो जाएं| एराक़ में अमेरिकी उपस्थिति इसलिए भी जरूरी है कि वहां रहकर उसे ईरान को तंग करने में आसानी होगी हालांकि एराक़ के शिया और वहां रहनेवाले ईरानी अमेरिका की नाक में दम करते रहेंगे| ओबामा द्वारा वापसी की घोषणा के बावजूद अमेरिका का एराक़ से पिंड छूटनेवाला नहीं है|
यह ठीक है कि सपाम के ज़माने में एराक़ को माहौल तानाशाही था लेकिन आज क्या हाल है ? मार्च 2010 में चुनाव जरूर हुए हैं लेकिन पूरी एराकी राजनीति में सांप्रदायिकता का जहर घुल गया है| 325 सदस्यों की संसद में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है| शिया-पार्टी के नेता नूरी अल मलिकी को 89 सीटें मिली हैं तो सुन्नी पार्टी के नेता अयाद अल्लवी को 91 | दोनों नेता राष्ट्रवादी हैं, दोनों शक्तिशाली केंद्र के पक्षधर हैं, दोनों सुयोग्य हैं लेकिन दोनों एक दूसरे को फूंटी आंख नहीं सुहाते| छह माह हो गए, अभी तक बगदाद में नई सरकार का गठन नहीं हुआ है| एराक़ का हाल नेपाल से भी बुरा है| अन्य छोटी-मोटी पार्टियों और गुटों के साथ जोड़-तोड़ चल रही है लेकिन सारा अमेरिकी जुगाड़ फेल हो रहा है| कुशासन, भ्रष्टाचार, अभाव और बेकारी से त्र्स्त एराक़ से अमेरिकी की वापसी किसी के लिए गर्व का विषय नहीं है| अमेरिका सचमुच वापिस हो जाए तो भी नए एराक़ का संविधान कुछ इस तरह का बनवाया गया है कि वहां बगदाद की केंद्र सरकार ठीक से चल ही नहीं पाएगी| एराक़ी लोग सद्दाम को याद करने पर मजबूर होंगे| वास्तव में विश्व राजनीति में यह अमेरिका की गिरती हुई छवि को लगनेवाला नया धक्का है| एराक़ से हो रही वापसी अफगानिस्तान के लिए भी शुभ-संकेत नहीं है| यदि अमेरिका अफगानिस्तान से अगले साल लौटेगा तो वह एराक़ से भी बदतर हालात में उसे छोड़ेगा| अकेले अफगानिस्तान ने सोवियत संघ का विश्व-शक्ति का दर्जा खत्म कर दिया| अब अफगानिस्तान और एराक़ दोनों मिलकर अमेरिका का विश्व की महत्तम शक्ति का दर्जा खत्म कर रहे हैं| बुश की मूर्खताओं का सुपरिणाम यह है कि अब विश्व-राजनीति एकधु्रवीय की बजाय बहुध्रुवीय बनती जा रही है| चीन, भारत, यूरोप और आग्नेय एशिया नए शक्ति-केंद्रों की तरह उभर रहे हैं|
- लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।

शिखरों पर शून्य

शिखरों पर शून्य

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

न हम किसी युद्ध में फंसे हैं, न कोई दंगे हो रहे हैं, न चीन और पाकिस्तान की तरह हजारों लोग बाढ़ में मर रहे हैं, न सरकार के गिरने की कोई नौबत है। विकास दर में बढ़ोतरी हो रही है, महंगाई थोड़ी घटी है, करोड़पतियों की संख्या बढ़ी है, श्रीलंका, नेपाल और पाकिस्तान जैसे देशों को हम करोड़ों रुपए यों ही दे देते हैं। हमारे दिल्ली जैसे शहर यूरोपीय शहरों से होड़ ले रहे हैं।
हजारों करोड़ रुपए हम खेलों पर खर्च कर रहे हैं तो फिर रोना किस बात का है? देश में एक अजीब-सा माहौल क्यों बनता जा रहा है? खासतौर से तब जबकि देश के दो प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा पक्ष और विपक्ष की भूमिका निभाने की बजाय पक्ष और अनुपक्ष की तरह गड्ड-मड्ड हो रहे हैं?
ऐसा क्या है, जो देश को दिख तो रहा है, लेकिन समझ में नहीं आ रहा है?,जो समझ में नहीं आ रहा, वह एक पहेली है। पहेली यह है कि देश में संसद है, सरकार है, राजनीतिक दल हैं, लेकिन कोई नेता नहीं है? सोनिया गांधी लगातार चौथी बार कांग्रेस अध्यक्ष चुनी गईं। रिकॉर्ड बना, लेकिन कोई लहर नहीं उठी। डॉ मनमोहन सिंह ने भी रिकॉर्ड कायम किया। नेहरू और इंदिरा के बाद तीसरे सबसे दीर्घकालीन प्रधानमंत्री हैं, लेकिन वे हैं या नहीं हैं, यह भी देश को पता नहीं चलता।
आध्यात्मिक दृष्टि से यह सर्वश्रेष्ठ स्थिति है। ऐसी स्थिति, जिसमें होना न होना एक बराबर ही होता है। इसमें जरा भी शक नहीं कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के बीच जैसा सहज संबंध है, वैसा सत्ता के गलियारों में लगभग असंभव होता है। भारत में सत्ता के ये दो केंद्र हैं या एक, यह भी पता नहीं चलता। न तो उनमें कोई तनाव है और न ही स्वामी-दास भाव है, जैसा कि हम व्लादिमीर पुतिन और दिमित्री मेदवेदेव के बीच मास्को में देखते हैं।
इसी प्रकार सत्ता पक्ष और विपक्ष देश में है तो सही, लेकिन कहीं कोई चुनौती दिखाई नहीं पड़ती। छोटे-मोटे क्षेत्रीय दल जो कांग्रेस के साथ हैं, उनके नेता भ्रष्टाचार के ऐसे मुकदमों में फंसे हुए हैं कि कांग्रेस ने जरा स्क्रू कसा नहीं कि वे सीधे हो जाते हैं।
जिस बात का वे निरंतर विरोध करते हैं, उसी पर दौड़कर समर्थन दे देते हैं। जैसा कि परमाणु सौदे पर पिछली संसद में हुआ था। कांग्रेस का हाल भी वही है। वह उनके ब्लैकमेल के आगे तुरंत घुटने टेक देती है। जिस जातीय गणना का कांग्रेस ने 1931 में और आजाद भारत में सदा विरोध किया, अब कुछ जातिवादी क्षेत्रीय दलों के दबाव में आकर उसने अपनी नेता की भूमिका तज दी और अब वह उन अपने समर्थक दलों की पिछलग्गू बन गई है।
सत्तारूढ़ कांग्रेस सत्ता पर आरूढ़ जरूर है, लेकिन कई मुद्दों पर वह पत्ता भी नहीं हिला सकती। इससे भी ज्यादा दुर्दशा विपक्षी दलों की है। कम्युनिस्ट पार्टियां अभी भी मुखर हंै, लेकिन पिछले चुनाव में वे अपने गढ़ों में ही पिट गईं। उनका आपसी लत्तम-धत्तम इतना प्रखर हो गया है कि उनके मुखर होने पर देश का ध्यान ही नहीं जाता। जोशी-डांगे-मुखर्जी और नंबूदिरिपाद की कम्युनिस्ट पार्टियों में आज के जैसा संख्या-बल नहीं था, लेकिन वाणी-बल था, जो सारे देश में प्रतिध्वनित होता था।
नेहरू जैसे नेता को भी उस पर प्रतिक्रिया करनी पड़ती थी। आजकल यही पता नहीं चलता कि वामपंथ का असली प्रवक्ता कौन है। मार्क्‍सवादी पार्टी के महासचिव प्रकाश करात ने परमाणु-हर्जाना विधेयक का विरोध जरूर किया, लेकिन वह नक्कारखाने में तूती की तरह डूब गया। वे दिन गए, जब लोहिया के पांच-सात लोग पूरी संसद को अपनी चिट्टी उंगली पर उठाए रखते थे। अब दिन में दीया लेकर ढूंढ़ने निकलो तो भी कोई समाजवादी नहीं मिलता।
इतनी बड़ी संसद में क्या एक भी सांसद ऐसा है, जो लोहिया की तरह पूछ सके कि प्रधानमंत्रीजी, आप पर 25000 रुपए प्रतिमाह कैसे खर्च हो रहे हैं और आम आदमी तीन आने रोज पर कैसे गुजारा करेगा? अब तो पूंजीवादी, समाजवादी, साम्यवादी, दक्षिणपंथी और वामपंथी- सभी एक पथ के पथिक हो गए हैं।
सबसे बड़े विपक्षी दल के तौर पर भाजपा जबर्दस्त भूमिका निभा सकती थी, लेकिन वह बिना पतवार की नाव बन गई है। उसका अध्यक्ष भी कांग्रेस अध्यक्ष की तरह आसमान से उतरने लगा है। वह अपने नेताओं के कंधों पर बैठा है, लेकिन उसके पांव नहीं हैं। उसे पांव की जरूरत भी क्या है?
भाजपा में हाथ-पांव ही हाथ-पांव हैं। यह कार्यकर्ताओं की पार्टी ही तो है। इसमें गलती से एक नेता उभर आया था। उसे जिन्ना ले बैठा। अब कांग्रेस की तरह भाजपा के शिखर पर भी शून्य हो गया है। ये शून्य-शिखर आपस में जुगलबंदी करते रहते हैं। शून्य-शिखरों की इस जुगलबंदी में से कुछ समझौते निकलते हैं और कुछ शिष्टाचार निभते हैं, लेकिन कोई वैकल्पिक समाधान नहीं निकलते। भारत की राजनीति में से द्वंद्वात्मकता का तिरोधान हो गया है।
यह एकायामी (वन डायमेंशनल) राजनीति नौकरशाहों और सरकारी बाबुओं के कंधों पर टिकी हुई है। इसमें पार्टियों की भूमिका गौण हो गई है। जनता और सरकार के बीच पार्टी नाम का सेतु लगभग अदृश्य हो गया है। जब पार्टी ही अप्रासंगिक हो गई है तो नेता की जरूरत कहां रह गई है? बिना नेता के ही यह देश चला जा रहा है। यह लोकतंत्र का सबसे बड़ा अजूबा है। बाबुओं के दम पर बाबुओं का राज चल रहा है। आम जनता के प्रति हमारे बाबुओं का जो रवैया होता है, वही आज हमारे नेताओं का है।
देश में अगर आज कोई नेता होता तो क्या वह अनाज को सड़ने देता? यह ठीक है कि उच्चतम न्यायालय को ऐसे मामलों में टांग नहीं अड़ानी चाहिए, लेकिन भूखों को मुफ्त बांटने के विरुद्ध ऐसे तर्क वही दे सकता है, ‘जाके पांव फटी न बिवाई’! सरकार तो सरकार, विपक्ष क्या कर रहा है?
वह उन गोदामों के ताले क्यों नहीं तुड़वा देता? धरने क्यों नहीं देता? सत्याग्रह क्यों नहीं करता? भ्रष्टाचार क्या सिर्फ केंद्र में है? क्या राज्य सरकारें दूध की धुली हुई हैं? भाजपा और जनता दल के राज्यों में कोई चमत्कारी कदम क्यों नहीं उठाया जाता? माओवादियों से पांच-सात राज्य ऐसे लड़ रहे हैं, जैसे वे पांच-सात स्वतंत्र राष्ट्र हों। क्यों हो रहा है, ऐसा? इसीलिए कि देश में कोई समग्र नेतृत्व नहीं है। चीनियों के आगे भारत को क्यों घिघियाना पड़ रहा है?
कश्मीर में कोरे शब्दों की चाशनी क्यों घुल रही है? कोई बड़ी पहल क्यों नहीं हो रही है? इसीलिए कि भारत की राजनीति के बगीचे में सिर्फ गुलदस्ते सजे हुए हैं। इन गुलदस्तों में न कोई कली चटकती है और न फूल खिलते हैं। जो फूल सजे हुए हैं, उनमें खुशबू भी नहीं है। भारत का नागरिक समाज या चौथा खंभा भी इतना मजबूत नहीं है कि वह नेतृत्व कर सके। इसके बावजूद भारत है कि चल रहा है। अपनी गति से चल रहा है। शिखरों पर शून्य है तो क्या हुआ? मूलाधार में तो कोई न कोई कुंडलिनी लगी हुई है। - लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।

Sunday, September 5, 2010

Top 10 Sex Tips to Improve your Sex Life

Top 10 Sex Tips to Improve your Sex Life  
By Dr. Seth

Everyone wants to be a better lover and have better sex. Many people are self-conscious about their skills as a lover or sex partner, and this can hinder having a satisfying sex life. Always remember to relax, be communicative, use protection and ultimately have fun. As with every other skill, there are several tips that you can follow to aid you in your sexual endeavors.
  1. Be communicative: When engaging in intercourse, tell your partner your sexual likes and dislikes, and encourage them to tell you theirs. This not only flatters your partner’s ego and gets them in the mood, but it will also inform your lover as to what turns you on and what satisfies you sexually. Sharing the sex tips that you have learned in the past can sometimes benefit your current relationship.
  2. Share your fantasies: Discussing your sexual fantasies with your lover can be fun and will bring you both to a new level of intimacy.
  3. Engage in foreplay: Foreplay is a great way to excite your mate and build up anticipation for the big event, which ultimately makes for a more powerful climax during intercourse.
  4. Try different positions: One of the oldest sex tips in the book is literally in a book. If the same old positions are getting boring, invest in a copy of the Kama Sutra, an ancient literary gem that outlines a great variety of sex positions and breathing exercises to prolong climax.
  5. Play with toys: If it is something you are comfortable with, head to an erotic boutique with your lover to see what you can purchase to liven up the action in the bedroom. There are several sex toys on the market such as vibrators, velvet-lined handcuffs, lubricants and swings that can help increase sexual pleasure for both men and women.
  6. Engage in role play: As one of the most amusing sex tips, role playing will definitely spice up intercourse. Everyone has a specific sexual scenario that they are curious about and would like to try out. As long as both participants are willing and comfortable with the scenario, dress-up and have fun.
  7. Experience a daring place: Although it can be risky; many people claim that having intercourse in a somewhat public spot can be very arousing. The thrill of getting caught gets the adrenaline flowing and increases sexual pleasure.
  8. Catch a flick: Watching a pornographic film together or flipping through a pornographic magazine is an entertaining activity that will not only awaken your senses, but will also provide suggestions on new positions or scenarios to try with your partner.
  9. Talk dirty talk: Many people get sexually aroused when their lover talks dirty to them. It builds anticipation and triggers a person’s primal instincts. Talking dirty involves letting go of your self-consciousness and allowing your imagination to run wild. Words are very powerful, even more so during intercourse.
  10. Lights, Camera, Action: Just because sex is usually performed in a bedroom does not mean that it has to be lights off. Many men and women get turned on by looking at their partner while engaged in intercourse.

भारत क्यों दबे चीन से

भारत क्यों दबे चीन से

चीन की हिमाकत पर सबको आश्चर्य हो रहा है| जो देश जी-20 के सम्मेलन में भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चलता है, जो पर्यावरण मुद्दों पर भारतीय समर्थन पाने को बेताब रहता है, जो भारत के साथ सामरिक सहकार की पींगे भर रहा है, जो अंतरिक्ष में भारत के साथ सहयोग करना चाहता है, जो भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है, जो भारत के साथ मिलकर अन्य देशों में संयुक्त उद्यम खड़े करना चाहता है, वही चीन भारत के एक लेफ्टीनेंट जनरल को वीज़ा देने से मना कर देता है| सरकारी यात्र पर जा रहे जनरल बी.एस. जसवाल को अपना कार्यक्रम अचानक रद्द करना पड़ता है|
जसवाल की चीन-यात्र किसी मौज-मजे के लिए नहीं थी | वह दोनों देशों में सैन्य-सहयोग बढ़ाने के लिए होनी थी| जसवाल ने कोई ऐसा काम नहीं किया, जो चीन-विरोधी कहा जा सके| भारत ने किसी चीनी जनरल का वीज़ा नहीं रोका| आखिर चीन के पास ऐसा कौनसा बहाना है, जिसके आधार पर उसने जसवाल का वीज़ा रोक लिया ? यह बहाना भी बड़ा अजीब है| चीन का कहना है कि जसवाल उत्तरी कमांड के जनरल हैं और क्योंकि जम्मू-कश्मीर उनके क्षेत्रधिकार में आता है, इसलिए उन्हें चीन नहीं जाने दिया जाएगा| दूसरे शब्दों में चीन का कहना है कि जम्मू-कश्मीर पर भारत का कब्जा गैर-कानूनी है| वह उसे भारत का हिस्सा नहीं मानता| यदि वह जसवाल को वीज़ा देगा तो यह मान जाएगा कि कश्मीर भारत का हिस्सा है|
ऐसी बात चीन अरूणाचल या लद्दाख के बारे में अक्सर कहता ही रहता है| इन क्षेत्रें को वह अपना बताता है लेकिन कश्मीर से उसका क्या लेना-देना है ? लद्दाख को ज़रा एक तरफ कर दें तो कश्मीर से उसका कुछ भी लेना-देना नहीं है लेकिन कश्मीर के खातिर चीन इतनी खतरनाक चाल क्यों चल देता है ? इसका कारण क्या है ? इसका कारण पाकिस्तान है| मूल से ब्याज ज्यादा प्यारा है| पाकिस्तान को चीन ने अपनी तुरूप का पत्ता बना रखा है| चीन को अपने दावे की ज़मीन से पाकिस्तान के दावे की ज़मीन ज्यादा प्यारी है| यों भी पाकिस्तान ने 1963 में चीन को अपने कब्जाए हुए कश्मीर की हजारों वर्गमील जमीन मुफ्त में दे दी थी, हालांकि उस समझौते में यह भी लिखा है कि उस ज़मीन के बारे में अंतिम फैसला तभी होगा, जब भारत-पाक विवाद का निपटारा हो जाएगा| चीन नहीं चाहता कि कोई निबटारा हो| वह ज़मीन हमेशा चीन के कब्जे में बनी रहे, इसके लिए यह जरूरी है कि चीन भारत-विरोधी पैंतरा बनाए रखे| जसवाल के मामले में उसने यह करके दिखा दिया|
इसके पहले भी वह कुछ कुछ छेड़छाड़ करता रहा है| उसने अरूणाचल और कश्मीर के नागरिकों को जो वीज़ा पिछले दिनों दिए, वे उनके पासपोर्ट पर नहीं दिए| सिर्फ वीज़ा के कागज़ अलग से पकड़ा दिए ताकि वेरेकार्डके तौर पर भविष्य में दिखाए नहीं जा सकें| याने चीन अपनी हरकतों से यह बराबर सिद्घ करता जा रहा है कि वह भारत के इन सीमांत प्रदेशों को भारत का अंग नहीं मानता| उसका कहना है कि ये तो चीन के अंग है| यहां रहनेवाले नागरिकों को वह वीज़ा कैसे दे सकता है ? चीन से कोई पूछे कि अगर आप अरूणाचल, लद्दाख और कश्मीर को अपना अंग मानते हैं तो क्या आप इन प्रदेशों के निवासियों को अपना नागरिक मानने को तैयार होंगे ? यह सवाल तो सिर्फ सवाल के लिए है लेकिन भारत सरकार चाहे तो चीन के नहले पर दहला मार सकती है| वह तिब्बत और सिंक्यांग (शिनच्यान) के नागरिकों को भारतीय वीज़ा देना बंद कर दे| यदि वे भारत आना चाहें तो चीन की तरह वह भी उन्हें अलग से कागज़् पकड़ा दे याने चीन को यह संदेश मिले कि भारत अब तिब्बत और सिक्यांग को चीन का हिस्सा नहीं मानता| इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि तिब्बत और कश्मीर एक-जैसे मसले हैं| तिब्बत और कश्मीर के मामलों में ज़मीन-आसमान का अंतर है लेकिन यहां सिर्फ जैसे के साथ वैसा बर्ताव करने की बात है| हमें कश्मीर पर चोट पहुंचाकर भी यदि चीन को भारत से संबंध खराब होने का डर नहीं है तो तिब्बत और सिंक्यांग पर मुंह खोलने में हमें कोई डर क्यों हो ? हमें चीन की जितनी जरूरत है, उससे ज्यादा चीन को हमारी जरूरत है|
कोई कारण नहीं है कि भारत चीन से दबे| चीन जब भी दलाई लामा के बारे में जुबान खोले, उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए| चीन ने अरूणाचल को मिलनेवाली अंतरराष्ट्रीय मदद पिछले दिनों रूकवा दी| वह बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, और अफगानिस्तान में तरह-तरह के प्रकल्प चलाकर भारत के पड़ौसियों पर डोरे डाल रहा है| पाकिस्तान को उकसाने में तो उसने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी है| प्रत्येक भारत-पाक युद्घ के दौरान उसने पाकिस्तान का पक्ष लिया| उसने पाकिस्तान को परमाणु शस्त्र् दिए और परमाणु-विद्या सिखाई ! मुशर्रफ और ज़रदारी ने जितने दौरे चीन के किए, उतने किसी मुस्लिम देश के भी नहीं किए| बल्तिस्तान और गिलगित में आजकल चीन के हजारों सैनिक अपना पड़ाव डाले हुए हैं| अब चीन पाक-अधिकृत कश्मीर में ऐसी सड़के और रेलें बना रहा है, जिनके चलते चीनी माल को ग्वादर बंदरगाह तक पहुंचने में सिर्फ 48 घंटे लगेंगे जबकि समुद्री रास्ते से आजकल उसे 20 से 25 दिन लग जाते हैं| इन मार्गों के खुलते ही चीन को मध्य और पश्चिम एशिया के लगभग एक दर्जन राष्ट्रों के बाजारों तक पहुंचने का सबसे छोटा रास्ता मिल जाएगा जबकि पाकिस्तानी अवरोध के कारण भारत के लिए ये दरवाजे खुल ही नहीं पाएंगे| इसीलिए चीन दुनिया के हर फोरम में पाकिस्तान का वकील बना रहता है| आजकल वह परमाणु-सप्लायर्स-समूह की आंख में धूल झोंककर पाकिस्तान में दो नई परमाणु-भटि्रटयां भी लगाना चाहता है| भारत-पाक संबंधों में तनाव का सबसे बड़ा कारण चीन ही है| कोई आश्चर्य नहीं कि चीन के इशारे पर ही बाढ़-पीडि़त सहायता का भारतीय चेक पाकिस्तान ने लौटा दिया है| यदि भारत के नीति-निर्माता चीन के साथ सख्ती के साथ पेश आएंगे तो चीन का बर्ताव तो सुधरेगा ही, पाकिस्तान का भी अपने आप सुधर जाएगा|
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

69 Sex Tips

69 Sex Tips
By Dr. Seth

The sexual act of 69 is intimate and extremely pleasurable when performed properly. This particular position is great because both partners can give and receive oral pleasure simultaneously. The posture of the bodies allows each partner a full view of each other’s genitalia. Needless to say, it is not a position for those who are a little bashful.

The 69 position, with the woman on top of the man, gives the man access to the clitoris, the vulva, the anus and the perineum (the patch of skin between the vaginal opening and the anus.) This posture can increase enjoyment of the act as the man is able to stimulate much more than just the clitoris. Moreover, in this position, when the woman stimulates the man’s penis with her mouth, the frenulum (the underside of the penis’ head) rubs against her palate, creating a unique and wonderful sensation for the man. There are several 69 tips that can improve a couple’s sexual encounters.

Hygiene
Since both partners are getting up close and personal with each other, it is recommended that both parties bathe beforehand. The beauty of the 69 position is the intimacy; however, this closeness can quickly become uncomfortable if either participant feels that their personal hygiene is not at its best. Taking a bath or showering together is a great idea as you will not only get clean, but you will also get turned on.

Technique
It is not necessary to continuously use your mouth in the 69 position; many 69 tips advise you to also use your hands, not only to vary the sensation, but also to give your mouth a break. An enticing addition to this sexual act is the use of flavored massage oils and lubricants. Be sure to choose non-toxic types that are both edible and non-irritating.

Positioning
The most important of 69 tips is indeed the positioning. Most people practice it with the woman on top and the man on the bottom. It can be satisfying the other way around, but the man’s weight often becomes cumbersome for the woman. And, women usually enjoy being on top because they have more control over their own pleasure. Men are typically in favor of this position; however, it can trigger premature ejaculation. It is therefore advisable that the man begin stimulating the woman first as this will prolong the experience for everyone involved. The man can prop a pillow under his neck to avoid muscle ache and stiffness. Many lovers practice the 69 position with both partners lying on their side in order to optimize comfort.

सांप्रदायिक शक्तियों को पहचानती है देश की जनता

सांप्रदायिक शक्तियों को पहचानती है देश की जनता
तनवीर जाफरी
राजधानी दिल्ली में पिछले दिनों देश के सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों के एक सम्मेलन में केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने देश में बढ़ रहे भगवा आतंकवाद के खतरों के प्रति चिंता क्या व्यक्त कर दी कि मानो उन्होने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो। अतिवादी हिंदुत्व की राजनीति करने वाले नेताओं व संगठनों को गृह मंत्री द्वारा प्रयोग किया गया शब्द भगवा आतंकवाद बहुत बुरा लगा। इतना बुरा कि भारतीय जनता पार्टी ने संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे को उठाया तथा गृह मंत्री को खरी खोटी सुनाई। यहां यह बात काबिले ग़ौर है कि गृहमंत्री के भगवा आतंकवाद शब्द का विरोध वही शक्तियां कर रही थीं जो इस्लामी आतंकवाद तथा जेहादी आतंकवाद अथवा मुस्लिम आतंक जैसे शब्दों का प्रयोग ढोल पीट पीट कर करती हैं। परंतु इन्हीं लोगों को भगवा शब्द जोकि वास्तव में एक रंग विशेष को कहा जाता है, के साथ आतंकवाद का शब्द जोडऩे पर आपत्ति हुई।
बहरहाल शाश्वत सत्य तो यही है कि आतंकवाद, आतंकवाद ही होता है। न उसका किसी धर्म, संप्रदाय, जाति, वर्ग, वर्ण तथा रंग से कोई वास्ता होता है। न ही कोई संप्रदाय विशेष अपने अनुयाइयों को आतंकवाद के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है। परंतु इन सब बातों को समझने-बूझने के बावजूद आज देश व दुनिया में इस्लामी आतंकवाद जैसे शब्द का बढ़-चढ़ कर इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां तक कि मैं स्वयं अपने तमाम आलेखों में यह शब्द कई बार प्रयोग कर चुका हूं। सवाल यह है कि क्या इन शब्दों के प्रयोग करने मात्र से कोई समुदाय या धर्म आतंकी हो जाएगा? शायद हरगिज़ नहीं। परंतु इससे भी बड़ा सवाल यह ज़रूर उठता है कि आज दुनिया में किन परिस्थितियों के तहत इस्लामी आतंकवाद या जेहादी आतंकवाद जैसे शब्दों को उछाला जा रहा है। कौन सी ताकतें इन शब्दों के प्रचलित होने में अपना अहम योगदान दे रही हैं? मैं यह मानता हूं कि इस्लाम धर्म का विरोध करने में तथा इसकी बदनामी पर खुश होने में दिलचस्पी रखने वाले लोग ऐसे शब्दों का जानबूझ कर बार-बार प्रयोग करते हैं। परंतु मेरे जैसी सोच रखने वाला व्यक्ति इन इस्लाम विरोधी शक्तियों की इन कोशिशों का हरगिज़ बुरा नहीं मानता। मुझे तो उन बुनियादी कारणों पर नज़र डालनी होती है जिसके चलते इस्लामी आतंकवाद जैसे शब्द प्रचलन में आए। इस्लाम विरोधी ताकतों का इसमें क्या दोष। यह तो नीतिगत परिस्थितियां हैं जिसमें कि किसी भी दुश्मन को मौक़े की तलाश होती है अर्थात् सबसे बड़ा दोषी वह जोकि ऐसा अवसर प्रदान करे।
तालिबान व अलकायदा जैसे आतंकी संगठन तथा इन संगठनों की विचारधारा का समर्थन करने वाली अतिवादी शक्तियां निश्चित रूप से देखने व सुनने में मुसलमान ही हैं। यह भी सच है कि इन संगठनों तथा इन जैसे और तमाम आतंकी संगठनों से जुड़े लोग स्वयं को सच्चा इस्लाम परस्त भी बताते हैं। ऐसे में यदि इनके द्वारा फैलाए जा रहे आतंकवाद को इस्लामी आतंकवाद का नाम मीडिया द्वारा अथवा इस्लामी विरोध की ताक में बैठी ताकतों द्वारा दिया जा रहा है तो इसमें मीडिया अथवा इस्लाम विरोधियों का दोष कम स्वयं उन तथाकथित मुसलमानों का अधिक है जो आतंकवाद जैसे बुनियादी इस्लाम विरोधी उसूलों पर चलते हुए भी स्वयं को इस्लाम परस्त तथा मुसलमान कहने से बाज़ नहीं आते।
यहां एक बार फिर इस्लामी इतिहास का वही उदाहरण दोहराने की ज़रूरत महसूस हो रही है जो मैं अपने आलेखों में प्राय: लिखता रहता हूं। अर्थात् 1400 वर्ष पूर्व की करबला की ऐतिहासिक घटना। एक ओर सीरियाई शासक यज़ीद जोकि स्वयं को मुसलमान भी कहता था, नमाज़ी भी बताता था तथा इस्लामी देश का शासक होने की तमन्ना भी रखता था। तो दूसरी ओर हज़रत इमाम हुसैन अर्थात् इस्लाम के प्रर्वतक हज़रत मोहम्मद के सगे नाती। करबला में यज़ीद की सेना ने हज़रत इमाम हुसैन व उनके 72 परिजनों व साथियों को कत्ल कर दिया। इस घटना का सार यह है कि हज़रत हुसैन ने क्रूर, दुष्ट, अधर्मी, दुश्चरित्र तथा एक अहंकारी तथाकथित मुस्लिम बादशाह यज़ीद को इस्लामी राष्ट्र का बादशाह स्वीकार करने के बजाए उसके हाथों स्वयं शहीद होकर हज़रत मोहम्मद के उस इस्लाम को जीवित रखा जो आज दुनिया का सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। अब यहां इस्लाम धर्म के आलोचकों तथा विरोधियों को स्वयं यह फैसला करना चाहिए कि करबला में वास्तविक इस्लाम धर्म का वास्तव में प्रतिनिधित्व कौन कर रहा था? यज़ीद या हुसैन? आज दुनिया यज़ीद को इस्लाम धर्म का वास्तविक रहनुमा स्वीकार नहीं करती। यदि ऐसा होता तो निश्चित रूप से इस्लाम पर एक आतंकी धर्म होने का ठप्पा लग गया होता। परंतु न ऐसा हुआ न ऐसा है। आज दुनिया हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के आगे नतमस्तक है तथा केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के लोग हज़रत इमाम हुसैन को ही इस्लामिक,धार्मिक प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करते हैं।
क्या इसी नज़रिए के साथ भगवा आतंकवाद या हिंदू आतंकवाद के विषय पर चिंतन करने की ज़रूरत नहीं है? बजाए इसके कि आप गला फाड़-फाड़ कर यह चिल्लाएं कि हमें यह मत कहो, हम ऐसे नहीं, हम वैसे नहीं? आज जब कभी भी देश की पहली बड़ी राजनैतिक हत्या अर्थात् राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कत्ल की बात आती है तो उंगली किस ओर उठती है? देश में आतंकवादी हमले जब भी कहीं होते थे तो आंख बंद कर देश का सारा मीडिया, दक्षिणपंथी ताकतें तथा मैं स्वयं भी सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद को कोसने लगते थे। परंतु जब जांच पड़ताल के बाद अब इन दक्षिणपंथी शक्तियों के चेहरे बेनकाब हो रहे हैं तो यही ताकतें इस बात का बुरा मान रही हैं कि हम पर उंगली मत उठाओ। हमारे देश की सेना दुनिया की सबसे बड़ी उन धर्मनिरपेक्ष सेनाओं में एक है जिसमें परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद सहित देश के सभी धर्मों व संप्रदायों के लोगों ने देश के लिए लड़ते हुए अपनी जानें न्यौछावर कीं । आज इसी सेना के एक दक्षिणपंथी सोच रखने वाले अधिकारी कर्नल पुरोहित ने हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष सेना को दागदार करने का प्रयास किया है। जिस देश में महान संत तथा भगवान राम के अवतार माने जाने वाले संत रामानंदाचार्य ने कबीर जैसे मुस्लिम जुलाहे को अपना शिष्य बनाकर सर्वधर्म सम्भाव की शिक्षा देने का संदेश दिया हो उसी धर्म के दयानंद पांडे तथा साध्वी प्रज्ञा जैसे चंद भगवाधारी साधुओं ने अपनी काली करतूतों से हिंदू धर्म की परंपरा को कलंकित करने का प्रयास किया है। स्पष्ट है कि यह तथाकथित साधु व साध्वी भगवाधारी ही हैं।
मैं डंके की चोट पर यह बात कह सकता हूं और पहले भी कई बार यह लिख चुका हूं कि विश्व में हिंदू धर्म से अधिक सहिष्णुता रखने वाला धर्म कोई भी नहीं है। शायद इसी कारण हज़रत इमाम हुसैन ने भी यज़ीद के समक्ष लड़ाई टालने की गरज़ से यह प्रस्ताव रखा था कि वह उन्हें भारत जाने दे। आज हज़रत निज़ामुद्दीन ख्वाजा, मोईनुद्दीन चिश्ती तथा बाबा शेख़ फऱीद जैसे तमाम पीरों-फ़क़ीरों की दरगाहों पर पसरी रौनक़ हिंदू सहिष्णुता की जीती जागती मिसाल पेश करती हैं। ऐसे में यदि उस विशाल ह्रदय रखने वाले विश्व के सबसे सहिष्णुशील धर्म पर उंगली उठने की नौबत आए तो एक भारतीय होने के नाते मुझे भी बहुत अफसोस होता है। परंतु मैं इन दक्षिण पंथी शक्तियों की तरह राजनैतिक स्टंट के रूप में हाय वावैला करने के बजाए उसी इस्लामी आतंकवाद के नामकरण के कारणों की तरह ही भगवा अथवा हिंदू आतंकवाद के शब्द के विषय में भी यही सोचता हूं कि ऐसा कहने की नौबत क्यों आ रही है। देश वासी प्रमोद मुत्ताली नामक उस असामाजिक तत्व से ज़रूर वाकिफ होंगे जो भगवा रंग के झंडे भी प्रयोग करता है तथा उसने अपने संगठन का नाम श्री राम सेना भी रखा हुआ है और फिर उस श्री राम सेना प्रमुख का वह स्टिंग आप्रेशन भी याद कीजिए जिसमें उसे पैसे लेकर सांप्रदायिक दंगे कराने की बात स्वीकार करते हुए दिखाया गया था। क्या ऐसे अराजक तत्व को यह अधिकार है कि वह अपने संगठन का नाम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जैसे त्यागी व तपस्वी महापुरुष के नाम से जोड़कर रखे?
दरअसल देश की जनता इस प्रकार के राजनैतिक हथकंडों से ब$खूबी वाकिफ है। गांधी की हत्या से लेकर गुजरात के दंगों तक सब कुछ देश के सामने है। 1992 में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा संविधान तथा लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने की घटना भी देश देख चुका है। यदि इन दक्षिणपंथी शक्तियों के आडंबरों अथवा पाखंडों में लेशमात्र भी सच्चाई होती तो भारतीय मतदाता इन्हें तीन सौ संसदीय सीटें देकर अब तक संसद में भेज चुके होते। परंतु भारतीय मतदाताओं ने इनके राम नाम रूपी उस दोहरे चरित्र को भी देख लिया है जबकि भगवान राम के नाम पर 183 सीटें लेकर यह संसद में पहुंचे परंतु सत्ता की लालच में राम नाम का त्याग कर उन्हीं 'सेक्यूलरिस्टों से हाथ मिला लिया जिन्हें यह जनता के समक्ष राम विरोधी, हिंदुत्व विरोधी तथा कभी-कभी राष्ट्र विरोधी भी बता दिया करते थे।
आज एक बार फिर वैसी ही कोशिशें जारी हैं। अपनी कमियों व नकारात्मक नीतियों में सुधार लाने के बजाए फिर हिंदू मतों के ध्रुवीकरण का असफल प्रयास किया जा रहा है। परंतु अब बार बार ऐसे प्रयास सफल $कतई नहीं होने वाले। हां इन दक्षिणपंथी शक्तियों के इस प्रकार हाय वावैला करने से देश में तनावपूर्ण माहौल ज़रूर पैदा हो सकता है। और इस प्रकार की परिस्थितियां निश्चित रूप से राष्ट्र के विकास में बाधक हैं। यदि यह शक्तियां वास्तव में देश का विकास चाहती हैं तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्वयं को पैरोकार समझती हैं तो उन्हें देश की धर्मनिरपेक्ष संस्कृति को समझना व अपनाना होगा तथा बेवजह चीखऩे चिल्लाने के बजाए अपनी कमियों को दुरुस्त करना होगा।

कौन नहीं करता तुष्टिïकरण की राजनीति?

कौन नहीं करता तुष्टिïकरण की राजनीति?
by Nirmal Rani

समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह यादव ने पिछले दिनों भारतीय मुसलमानों से इस बात के लिए क्षमा मांगी है कि उन्होंने $गलती से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से राजनैतिक दोस्ताना बढ़ाने की कोशिश की थी। उन्होंने यह भी कहा है कि वे हमेशा मुसलमानों के मान-सम्मान के लिए संघर्ष करते रहेंगे। $गौरतलब है कि कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के उस पूर्व मुख्यमंत्री का नाम है जिसने मुख्यमंत्री होते हुए 6 दिसंबर 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस में अपनी अहम भूमिका अदा की थी। इसके बाद विशेष कर उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाता मुलायम सिंह यादव के साथ हो लिए थे। क्योंकि 1990 में 1992 जैसी ही परिस्थितियों में मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश का मुख्यमंत्री होते हुए अपने कर्तव्य का तथा भारतीय संविधान की रक्षा का ब$खूबी निर्वहन करते हुए अतिवादी भीड़ को इसी विवादित स्थल के समीप फटकने तक नहीं दिया था। उसी समय से मुस्लिम समुदाय मुलायम सिंह यादव को अपने नेता के रूप में देखने लगा था। 1992 की घटना ने कांग्रेस पार्टी से भी मुसलमानों का विश्वास उठा दिया था। लगभग दो दशक की इस उतार-चढ़ाव भरी राजनीति के बाद गत् संसदीय चुनावों में मुलायम व कल्याण ने आपस में गलबहियंा कर लीं थीं। यह बात मुस्लिम समाज को नागवार गुज़री। और इसका ख़्ामियाज़ा मुलायम को भुगतना पड़ा। शायद अब उन्हें यह एहसास हुआ है कि उनका यह $कदम सही नहीं था। और इसी कारण मुलायम ने मुसलमानों से मा$फी मांगने जैसा राजनैतिक अस्त्र एक बार फिर चलाया है।

, मुलायम के इस मा$फीनामे पर कुछ मुलायम विरोधी राजनैतिक लोगों द्वारा यह कहा जा रहा है कि वे तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं। भारतीय राजनीति में अक्सर कई राजनैतिक दल किसी न किसी अन्य दलों पर तुष्टिïकरण का आरोप लगाते रहते हैं। देश की आ$जादी से लेकर अब तक यह सिलसिला जारी है। क्यों लगाए जाते हैं तुष्टिïकरण के आरोप? क्या होता है तुष्टिïकरण? कौन सा राजनैतिक दल करता है तुष्टिïकरण की राजनीति और कौन सा राजनैतिक दल तुष्टिïकरण नहीं करता? क्यों की जाती है तुष्टिïकरण की राजनीति? भारतीय समाज अक्सर इसी पसोपेश में दिखाई देता है। मुख्य रूप से राष्टï्रीय स्तर पर यह आरोप भारतीय जनता पार्टी तथा उसके सहयोगी राष्टï्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा कांग्रेस, वामपंथी दलों तथा धर्म निरपेक्षता पर विश्वास करने वाले संगठनों पर भारतीय मुस्लिम समाज को लेकर लगाया जाता है। इन हिन्दुत्ववादी संगठनों का आरोप है कि भारत में धर्म निरपेक्षता की राजनीति करने वाले अधिकांश राजनैतिक संगठन मुस्लिम तुष्टिïकरण की राजनीति करते हैं।

दूसरी ओर इन धर्म निरपेक्ष राजनैतिक संगठनों का मानना है कि उनके द्वारा उठाए गए ऐसे $कदम जिससे मुस्लिम समाज का कल्याण होता हो, वे केवल मुस्लिम समाज के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था व विकास के लिए लाभकारी होते हैं। परन्तु हिन्दुत्ववादी संगठन कहते हैं कि ऐसा नहीं है बल्कि मात्र अल्पसंख्यक मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही तुष्टिïकरण की राजनीति की जाती है। भारतीय मुस्लिम समाज के विकास एवं कल्याण संबंधी उठाए गए सभी $कदम इन्हें 'मुस्लिम तुष्टिïकरणÓ के पक्ष में उठाए जाने वाले $कदम न$जर आते हैं। सवाल यह है कि देश में क्या कोई ऐसा राजनैतिक संगठन भी है जो भारतीय मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए या किसी न किसी धर्म जाति या किसी वर्ग विशेष के मतों को प्राप्त करने के लिए तथाकथित तुष्टिïकरण की राजनीति न करता हो? तुष्टिïकरण का आरोप लगाने वाले संगठन स्वंय भी तुष्टिïकरण की नीतियों पर चलते देखे जा सकते हैं।

उदाहरण के तौर पर भारतीय जनता पार्टी द्वारा ही गुजरात दंगों के बाद भारत के राष्टï्रपति पद हेतु डा. ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम का प्रस्ताव किया गया था। यदि यह प्रस्ताव भारतीय जनता पार्टी द्वारा किया जाए तो भाजपा ऐसे प्रस्ताव द्वारा अपना कथित धर्म निरपेक्ष चेहरा दुनिया को दिखाना चाहती है। परन्तु यदि यह प्रस्ताव कांग्रेस या वामपंथी दलों, समाजवादी पार्टी अथवा राष्टï्रीय जनता दल जैसे संगठनों द्वारा पेश किया जाता तो यही भाजपा या उसके सहयोगी हिन्दुत्ववादी संगठन यह कहते देर नहीं लगाते कि यह तुष्टिïकरण की राजनीति है। इसी उदाहरण में एक और पहलू दिखाई देता है। कलाम की राष्टï्रपति पद की उम्मीदवारी का विरोध केवल उन्हीं वामपंथी दलों द्वारा किया गया जिन पर हमेशा ही यही भाजपा व उनके सहयोगी हिन्दुत्ववादी संगठन मुस्लिम तुष्टिïकरण की राजनीति करने का आरोप लगाते रहते हैं।आ$िखर तब कहां चला गया था वामपंथियों पर लगने वाला मुस्लिम तुष्टिïकरण का आरोप?

इस लिहा$ज से क्या भाजपा द्वारा कलाम को राष्टï्रपति पद के लिए प्रस्तावित करना केवल भारतीय मुसलमानों के तुष्टिïकरण के लिए उठाया गया $कदम नहीं कहा जा सकता?

भाजपा ने केंद्र में सत्तारूढ़ रहने के दौरान मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हितों के लिए कई महत्वपूर्ण $कदम उठाए। बिना किसी जनाधार वाले तथा अत्यन्त अल्प राजनैतिक अनुभव रखने वाले दो-दो युवा मुस्लिम नेताओं को वाजपेयी की सरकार में मंत्री बनाकर रखा गया। भारतीय मुस्लिम राजनीति में अपनी अहम पहचान रखने वाले आरि$फ मोहम्मद $खां व नजमा हैपतुल्ला जैसे नेताओं को भाजपा ने अपनी पार्टी में किस म$कसद के तहत आमंत्रित किया था। भाजपा ने ही अपने शासन काल में हज यात्रियों के लिए कई स्थानों से विशेष विमान उड़ाए जाने की व्यवस्था की थी। दो दशकों से लखनऊ में बंद पड़ा ऐतिहासिक मोहर्रम का जुलूस भाजपा ने पुन: निकलवाना शुरु किया था। भाजपा द्वारा इस्लामी विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन को न सि$र्फ पदमश्री से नवा$जा गया बल्कि उन्हें भाजपा हेतु वोट मांगने के लिए भी प्रयोग में लाया गया। बशीर बद्र जैसे मशहूर शायर को भाजपा द्वारा मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी का सचिव बनाया गया। उसी दौरान अटल हिमायती कमेटी नामक एक मुस्लिम ग्रुप तैयार किया गया तथा इसे मुस्लिम क्षेत्रों में भेजकर मुस्लिम वोट मांगे गए। वाजपेयी व लाल कृष्ण अडवाणी जैसे वरिष्ठï पार्टी नेताओं को रो$जा इ$फ्तार की पार्टियों का आयोजन करते व इनमें शरीक होते भी देखा गया। आख़्िार मुस्लिमों के प्रति दिखाई गई इस 'दरियादिलीÓ को क्या नाम दिया जाए? परन्तु जब ऐसे $कदम भाजपा द्वारा उठाए जाते हैं तब अन्य धर्म निरपेक्ष राजनैतिक दल इन पर तुष्टिïकरण की राजनीति करने का आरोप नहीं लगाते।

मायावती द्वारा उत्तर प्रदेश में अपने शासन के दौरान कई शहरों व $िजलों के नाम बदल दिए जाते हैं । इनमें से अधिकांश का नाम दलित नेताओं, दलित समाज के प्रेरणा स्रोत व आदर्श समझे जाने वाले महापुरुषों के नाम पर रखे जाते हैं। मायावती ने दलित समाज के कल्याण हेतु उत्तर प्रदेश में तमाम योजनाएं बनाई हैं । आ$िखर इनको केवल इसी न$जरिए से कैसे देखा जा सकता है कि यह सब कुछ मात्र तुष्टिïकरण के लिए ही उठाए जाने वाले $कदम हैं? आख़्िार इनमें निहित, समाज, राज्य व देश के कल्याणकारी पहलुओं को क्योंकर न$जरअन्दा$ज किया जाता है? क्या पंजाब में राजनीति करने वाले नेता या संगठन पंजाबियों या सिक्खों के कल्याण की बात नहीं करते? एक जाट नेता क्या जाटों के हितों की बात नहीं सोचता? क्या तमिल, बंगला, इसाई आदि समाज के बीच कार्य करने वाले लोग या इनसे जुड़े राजनैतिक संगठन, इनके हितों के लिए प्रयत्नशील नहीं रहते? स्वयं भारतीय जनता पार्टी द्वारा ही बार-बार आ$िखर हिंदुत्व तथा राम मन्दिर का मुद्दा क्योंकर उठाया जाता है? देश के किन मतदाताओं को केंद्र में रखकर ऐसे संवेदनशील मुद्दों के नाम पर वोट मांगे जाते हैं?भाजपा द्वारा कश्मीर से धारा 370 हटाया जाना, समान आचार संहिता की बात करना तथा राम जन्मभूमि मुद्दे उठाना भी उस न$जरिए से तो तुष्टिïकरण की ही राजनीति कही जाएगी?

वास्तव में यह तो नेताओं की अपनी स्वार्थपूर्ण मंशा पर निर्भर है कि वे कब, किसी समाज के पक्षधर बन बैठें और कब किसके किन $कदमों को तुष्टिïकरण के $कदम बताने लग जाएं। दरअसल यह सारा का सारा खेल मात्र वोट बैंक इक_ïे करने का ही है। प्रत्येक राजनैतिक दल किसी न किसी वर्ग विशेष के तथाकथित तुष्टिïकरण में लगा ही हुआ है। अब चाहे इसे देश व समाज के हित के चश्मे से देखा जाए अथवा समाज में वैमनस्य फैलाने वाले शब्द 'तुष्टिïकरणÓ के चश्मे से। सच्चाई तो यही है कि भारत में रहने वाले सभी धर्मों व जातियों तथा समस्त क्षेत्र व वर्ग के लोगों को हर प्रकार से संतुष्टï रखने की भारत सरकार की व राज्य सरकारों की $िजम्मेदारी भी है तथा यह उन सब का अधिकार भी। इसलिए समुदाय विशेष के तुष्टिकरण की ही $खातिर किसी विशेष नेता या विशेष दलों पर ही तुष्टिïकरण का आरोप मढऩा हरगिज़ मुनासिब नहीं। परंतु सच तो यही है कि सभी राजनैतिक दल किसी न किसी का कथित तुष्टिïकरण समय-समय पर करते ही रहते हैं। अत: इन राजनैतिक हथकंडों को तथा भारत में रहने वाले किसी भी वर्ग विशेष संबंधी कल्याणकारी योजनाओं व नीतियों को तुष्टिïकरण कहने के बजाए राष्टï्र कल्याण हेतु उठाया गया $कदम मानना ही बेहतर होगा।