भारत क्यों दबे चीन से
चीन की हिमाकत पर सबको आश्चर्य हो रहा है| जो देश जी-20 के सम्मेलन में भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चलता है, जो पर्यावरण मुद्दों पर भारतीय समर्थन पाने को बेताब रहता है, जो भारत के साथ सामरिक सहकार की पींगे भर रहा है, जो अंतरिक्ष में भारत के साथ सहयोग करना चाहता है, जो भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है, जो भारत के साथ मिलकर अन्य देशों में संयुक्त उद्यम खड़े करना चाहता है, वही चीन भारत के एक लेफ्टीनेंट जनरल को वीज़ा देने से मना कर देता है| सरकारी यात्र पर जा रहे जनरल बी.एस. जसवाल को अपना कार्यक्रम अचानक रद्द करना पड़ता है|
जसवाल की चीन-यात्र किसी मौज-मजे के लिए नहीं थी | वह दोनों देशों में सैन्य-सहयोग बढ़ाने के लिए होनी थी| जसवाल ने कोई ऐसा काम नहीं किया, जो चीन-विरोधी कहा जा सके| भारत ने किसी चीनी जनरल का वीज़ा नहीं रोका| आखिर चीन के पास ऐसा कौनसा बहाना है, जिसके आधार पर उसने जसवाल का वीज़ा रोक लिया ? यह बहाना भी बड़ा अजीब है| चीन का कहना है कि जसवाल उत्तरी कमांड के जनरल हैं और क्योंकि जम्मू-कश्मीर उनके क्षेत्रधिकार में आता है, इसलिए उन्हें चीन नहीं जाने दिया जाएगा| दूसरे शब्दों में चीन का कहना है कि जम्मू-कश्मीर पर भारत का कब्जा गैर-कानूनी है| वह उसे भारत का हिस्सा नहीं मानता| यदि वह जसवाल को वीज़ा देगा तो यह मान जाएगा कि कश्मीर भारत का हिस्सा है|
ऐसी बात चीन अरूणाचल या लद्दाख के बारे में अक्सर कहता ही रहता है| इन क्षेत्रें को वह अपना बताता है लेकिन कश्मीर से उसका क्या लेना-देना है ? लद्दाख को ज़रा एक तरफ कर दें तो कश्मीर से उसका कुछ भी लेना-देना नहीं है लेकिन कश्मीर के खातिर चीन इतनी खतरनाक चाल क्यों चल देता है ? इसका कारण क्या है ? इसका कारण पाकिस्तान है| मूल से ब्याज ज्यादा प्यारा है| पाकिस्तान को चीन ने अपनी तुरूप का पत्ता बना रखा है| चीन को अपने दावे की ज़मीन से पाकिस्तान के दावे की ज़मीन ज्यादा प्यारी है| यों भी पाकिस्तान ने 1963 में चीन को अपने कब्जाए हुए कश्मीर की हजारों वर्गमील जमीन मुफ्त में दे दी थी, हालांकि उस समझौते में यह भी लिखा है कि उस ज़मीन के बारे में अंतिम फैसला तभी होगा, जब भारत-पाक विवाद का निपटारा हो जाएगा| चीन नहीं चाहता कि कोई निबटारा हो| वह ज़मीन हमेशा चीन के कब्जे में बनी रहे, इसके लिए यह जरूरी है कि चीन भारत-विरोधी पैंतरा बनाए रखे| जसवाल के मामले में उसने यह करके दिखा दिया|
इसके पहले भी वह कुछ न कुछ छेड़छाड़ करता रहा है| उसने अरूणाचल और कश्मीर के नागरिकों को जो वीज़ा पिछले दिनों दिए, वे उनके पासपोर्ट पर नहीं दिए| सिर्फ वीज़ा के कागज़ अलग से पकड़ा दिए ताकि वे ‘रेकार्ड‘ के तौर पर भविष्य में दिखाए नहीं जा सकें| याने चीन अपनी हरकतों से यह बराबर सिद्घ करता जा रहा है कि वह भारत के इन सीमांत प्रदेशों को भारत का अंग नहीं मानता| उसका कहना है कि ये तो चीन के अंग है| यहां रहनेवाले नागरिकों को वह वीज़ा कैसे दे सकता है ? चीन से कोई पूछे कि अगर आप अरूणाचल, लद्दाख और कश्मीर को अपना अंग मानते हैं तो क्या आप इन प्रदेशों के निवासियों को अपना नागरिक मानने को तैयार होंगे ? यह सवाल तो सिर्फ सवाल के लिए है लेकिन भारत सरकार चाहे तो चीन के नहले पर दहला मार सकती है| वह तिब्बत और सिंक्यांग (शिनच्यान) के नागरिकों को भारतीय वीज़ा देना बंद कर दे| यदि वे भारत आना चाहें तो चीन की तरह वह भी उन्हें अलग से कागज़् पकड़ा दे याने चीन को यह संदेश मिले कि भारत अब तिब्बत और सिक्यांग को चीन का हिस्सा नहीं मानता| इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि तिब्बत और कश्मीर एक-जैसे मसले हैं| तिब्बत और कश्मीर के मामलों में ज़मीन-आसमान का अंतर है लेकिन यहां सिर्फ जैसे के साथ वैसा बर्ताव करने की बात है| हमें कश्मीर पर चोट पहुंचाकर भी यदि चीन को भारत से संबंध खराब होने का डर नहीं है तो तिब्बत और सिंक्यांग पर मुंह खोलने में हमें कोई डर क्यों हो ? हमें चीन की जितनी जरूरत है, उससे ज्यादा चीन को हमारी जरूरत है|
कोई कारण नहीं है कि भारत चीन से दबे| चीन जब भी दलाई लामा के बारे में जुबान खोले, उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए| चीन ने अरूणाचल को मिलनेवाली अंतरराष्ट्रीय मदद पिछले दिनों रूकवा दी| वह बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, और अफगानिस्तान में तरह-तरह के प्रकल्प चलाकर भारत के पड़ौसियों पर डोरे डाल रहा है| पाकिस्तान को उकसाने में तो उसने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी है| प्रत्येक भारत-पाक युद्घ के दौरान उसने पाकिस्तान का पक्ष लिया| उसने पाकिस्तान को परमाणु शस्त्र् दिए और परमाणु-विद्या सिखाई ! मुशर्रफ और ज़रदारी ने जितने दौरे चीन के किए, उतने किसी मुस्लिम देश के भी नहीं किए| बल्तिस्तान और गिलगित में आजकल चीन के हजारों सैनिक अपना पड़ाव डाले हुए हैं| अब चीन पाक-अधिकृत कश्मीर में ऐसी सड़के और रेलें बना रहा है, जिनके चलते चीनी माल को ग्वादर बंदरगाह तक पहुंचने में सिर्फ 48 घंटे लगेंगे जबकि समुद्री रास्ते से आजकल उसे 20 से 25 दिन लग जाते हैं| इन मार्गों के खुलते ही चीन को मध्य और पश्चिम एशिया के लगभग एक दर्जन राष्ट्रों के बाजारों तक पहुंचने का सबसे छोटा रास्ता मिल जाएगा जबकि पाकिस्तानी अवरोध के कारण भारत के लिए ये दरवाजे खुल ही नहीं पाएंगे| इसीलिए चीन दुनिया के हर फोरम में पाकिस्तान का वकील बना रहता है| आजकल वह परमाणु-सप्लायर्स-समूह की आंख में धूल झोंककर पाकिस्तान में दो नई परमाणु-भटि्रटयां भी लगाना चाहता है| भारत-पाक संबंधों में तनाव का सबसे बड़ा कारण चीन ही है| कोई आश्चर्य नहीं कि चीन के इशारे पर ही बाढ़-पीडि़त सहायता का भारतीय चेक पाकिस्तान ने लौटा दिया है| यदि भारत के नीति-निर्माता चीन के साथ सख्ती के साथ पेश आएंगे तो चीन का बर्ताव तो सुधरेगा ही, पाकिस्तान का भी अपने आप सुधर जाएगा|
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)
आपने बहुत अच्छी और अनोखी जानकारी दी....जानकर बहुत अच्छा लगा..रही चीन की बात तो ये तो सच है कि सामरिक दृष्टि से हम उससे कमतर है....लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कम कमज़ोर है.....भारत को किसी भी मामले में चीन के आगे झुकना नहीं चाहिये....
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