कौन नहीं करता तुष्टिïकरण की राजनीति?
by Nirmal Rani
समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह यादव ने पिछले दिनों भारतीय मुसलमानों से इस बात के लिए क्षमा मांगी है कि उन्होंने $गलती से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से राजनैतिक दोस्ताना बढ़ाने की कोशिश की थी। उन्होंने यह भी कहा है कि वे हमेशा मुसलमानों के मान-सम्मान के लिए संघर्ष करते रहेंगे। $गौरतलब है कि कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के उस पूर्व मुख्यमंत्री का नाम है जिसने मुख्यमंत्री होते हुए 6 दिसंबर 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस में अपनी अहम भूमिका अदा की थी। इसके बाद विशेष कर उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाता मुलायम सिंह यादव के साथ हो लिए थे। क्योंकि 1990 में 1992 जैसी ही परिस्थितियों में मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश का मुख्यमंत्री होते हुए अपने कर्तव्य का तथा भारतीय संविधान की रक्षा का ब$खूबी निर्वहन करते हुए अतिवादी भीड़ को इसी विवादित स्थल के समीप फटकने तक नहीं दिया था। उसी समय से मुस्लिम समुदाय मुलायम सिंह यादव को अपने नेता के रूप में देखने लगा था। 1992 की घटना ने कांग्रेस पार्टी से भी मुसलमानों का विश्वास उठा दिया था। लगभग दो दशक की इस उतार-चढ़ाव भरी राजनीति के बाद गत् संसदीय चुनावों में मुलायम व कल्याण ने आपस में गलबहियंा कर लीं थीं। यह बात मुस्लिम समाज को नागवार गुज़री। और इसका ख़्ामियाज़ा मुलायम को भुगतना पड़ा। शायद अब उन्हें यह एहसास हुआ है कि उनका यह $कदम सही नहीं था। और इसी कारण मुलायम ने मुसलमानों से मा$फी मांगने जैसा राजनैतिक अस्त्र एक बार फिर चलाया है।
, मुलायम के इस मा$फीनामे पर कुछ मुलायम विरोधी राजनैतिक लोगों द्वारा यह कहा जा रहा है कि वे तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं। भारतीय राजनीति में अक्सर कई राजनैतिक दल किसी न किसी अन्य दलों पर तुष्टिïकरण का आरोप लगाते रहते हैं। देश की आ$जादी से लेकर अब तक यह सिलसिला जारी है। क्यों लगाए जाते हैं तुष्टिïकरण के आरोप? क्या होता है तुष्टिïकरण? कौन सा राजनैतिक दल करता है तुष्टिïकरण की राजनीति और कौन सा राजनैतिक दल तुष्टिïकरण नहीं करता? क्यों की जाती है तुष्टिïकरण की राजनीति? भारतीय समाज अक्सर इसी पसोपेश में दिखाई देता है। मुख्य रूप से राष्टï्रीय स्तर पर यह आरोप भारतीय जनता पार्टी तथा उसके सहयोगी राष्टï्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा कांग्रेस, वामपंथी दलों तथा धर्म निरपेक्षता पर विश्वास करने वाले संगठनों पर भारतीय मुस्लिम समाज को लेकर लगाया जाता है। इन हिन्दुत्ववादी संगठनों का आरोप है कि भारत में धर्म निरपेक्षता की राजनीति करने वाले अधिकांश राजनैतिक संगठन मुस्लिम तुष्टिïकरण की राजनीति करते हैं।
दूसरी ओर इन धर्म निरपेक्ष राजनैतिक संगठनों का मानना है कि उनके द्वारा उठाए गए ऐसे $कदम जिससे मुस्लिम समाज का कल्याण होता हो, वे केवल मुस्लिम समाज के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था व विकास के लिए लाभकारी होते हैं। परन्तु हिन्दुत्ववादी संगठन कहते हैं कि ऐसा नहीं है बल्कि मात्र अल्पसंख्यक मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही तुष्टिïकरण की राजनीति की जाती है। भारतीय मुस्लिम समाज के विकास एवं कल्याण संबंधी उठाए गए सभी $कदम इन्हें 'मुस्लिम तुष्टिïकरणÓ के पक्ष में उठाए जाने वाले $कदम न$जर आते हैं। सवाल यह है कि देश में क्या कोई ऐसा राजनैतिक संगठन भी है जो भारतीय मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए या किसी न किसी धर्म जाति या किसी वर्ग विशेष के मतों को प्राप्त करने के लिए तथाकथित तुष्टिïकरण की राजनीति न करता हो? तुष्टिïकरण का आरोप लगाने वाले संगठन स्वंय भी तुष्टिïकरण की नीतियों पर चलते देखे जा सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर भारतीय जनता पार्टी द्वारा ही गुजरात दंगों के बाद भारत के राष्टï्रपति पद हेतु डा. ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम का प्रस्ताव किया गया था। यदि यह प्रस्ताव भारतीय जनता पार्टी द्वारा किया जाए तो भाजपा ऐसे प्रस्ताव द्वारा अपना कथित धर्म निरपेक्ष चेहरा दुनिया को दिखाना चाहती है। परन्तु यदि यह प्रस्ताव कांग्रेस या वामपंथी दलों, समाजवादी पार्टी अथवा राष्टï्रीय जनता दल जैसे संगठनों द्वारा पेश किया जाता तो यही भाजपा या उसके सहयोगी हिन्दुत्ववादी संगठन यह कहते देर नहीं लगाते कि यह तुष्टिïकरण की राजनीति है। इसी उदाहरण में एक और पहलू दिखाई देता है। कलाम की राष्टï्रपति पद की उम्मीदवारी का विरोध केवल उन्हीं वामपंथी दलों द्वारा किया गया जिन पर हमेशा ही यही भाजपा व उनके सहयोगी हिन्दुत्ववादी संगठन मुस्लिम तुष्टिïकरण की राजनीति करने का आरोप लगाते रहते हैं।आ$िखर तब कहां चला गया था वामपंथियों पर लगने वाला मुस्लिम तुष्टिïकरण का आरोप?
इस लिहा$ज से क्या भाजपा द्वारा कलाम को राष्टï्रपति पद के लिए प्रस्तावित करना केवल भारतीय मुसलमानों के तुष्टिïकरण के लिए उठाया गया $कदम नहीं कहा जा सकता?
भाजपा ने केंद्र में सत्तारूढ़ रहने के दौरान मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हितों के लिए कई महत्वपूर्ण $कदम उठाए। बिना किसी जनाधार वाले तथा अत्यन्त अल्प राजनैतिक अनुभव रखने वाले दो-दो युवा मुस्लिम नेताओं को वाजपेयी की सरकार में मंत्री बनाकर रखा गया। भारतीय मुस्लिम राजनीति में अपनी अहम पहचान रखने वाले आरि$फ मोहम्मद $खां व नजमा हैपतुल्ला जैसे नेताओं को भाजपा ने अपनी पार्टी में किस म$कसद के तहत आमंत्रित किया था। भाजपा ने ही अपने शासन काल में हज यात्रियों के लिए कई स्थानों से विशेष विमान उड़ाए जाने की व्यवस्था की थी। दो दशकों से लखनऊ में बंद पड़ा ऐतिहासिक मोहर्रम का जुलूस भाजपा ने पुन: निकलवाना शुरु किया था। भाजपा द्वारा इस्लामी विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन को न सि$र्फ पदमश्री से नवा$जा गया बल्कि उन्हें भाजपा हेतु वोट मांगने के लिए भी प्रयोग में लाया गया। बशीर बद्र जैसे मशहूर शायर को भाजपा द्वारा मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी का सचिव बनाया गया। उसी दौरान अटल हिमायती कमेटी नामक एक मुस्लिम ग्रुप तैयार किया गया तथा इसे मुस्लिम क्षेत्रों में भेजकर मुस्लिम वोट मांगे गए। वाजपेयी व लाल कृष्ण अडवाणी जैसे वरिष्ठï पार्टी नेताओं को रो$जा इ$फ्तार की पार्टियों का आयोजन करते व इनमें शरीक होते भी देखा गया। आख़्िार मुस्लिमों के प्रति दिखाई गई इस 'दरियादिलीÓ को क्या नाम दिया जाए? परन्तु जब ऐसे $कदम भाजपा द्वारा उठाए जाते हैं तब अन्य धर्म निरपेक्ष राजनैतिक दल इन पर तुष्टिïकरण की राजनीति करने का आरोप नहीं लगाते।
मायावती द्वारा उत्तर प्रदेश में अपने शासन के दौरान कई शहरों व $िजलों के नाम बदल दिए जाते हैं । इनमें से अधिकांश का नाम दलित नेताओं, दलित समाज के प्रेरणा स्रोत व आदर्श समझे जाने वाले महापुरुषों के नाम पर रखे जाते हैं। मायावती ने दलित समाज के कल्याण हेतु उत्तर प्रदेश में तमाम योजनाएं बनाई हैं । आ$िखर इनको केवल इसी न$जरिए से कैसे देखा जा सकता है कि यह सब कुछ मात्र तुष्टिïकरण के लिए ही उठाए जाने वाले $कदम हैं? आख़्िार इनमें निहित, समाज, राज्य व देश के कल्याणकारी पहलुओं को क्योंकर न$जरअन्दा$ज किया जाता है? क्या पंजाब में राजनीति करने वाले नेता या संगठन पंजाबियों या सिक्खों के कल्याण की बात नहीं करते? एक जाट नेता क्या जाटों के हितों की बात नहीं सोचता? क्या तमिल, बंगला, इसाई आदि समाज के बीच कार्य करने वाले लोग या इनसे जुड़े राजनैतिक संगठन, इनके हितों के लिए प्रयत्नशील नहीं रहते? स्वयं भारतीय जनता पार्टी द्वारा ही बार-बार आ$िखर हिंदुत्व तथा राम मन्दिर का मुद्दा क्योंकर उठाया जाता है? देश के किन मतदाताओं को केंद्र में रखकर ऐसे संवेदनशील मुद्दों के नाम पर वोट मांगे जाते हैं?भाजपा द्वारा कश्मीर से धारा 370 हटाया जाना, समान आचार संहिता की बात करना तथा राम जन्मभूमि मुद्दे उठाना भी उस न$जरिए से तो तुष्टिïकरण की ही राजनीति कही जाएगी?
वास्तव में यह तो नेताओं की अपनी स्वार्थपूर्ण मंशा पर निर्भर है कि वे कब, किसी समाज के पक्षधर बन बैठें और कब किसके किन $कदमों को तुष्टिïकरण के $कदम बताने लग जाएं। दरअसल यह सारा का सारा खेल मात्र वोट बैंक इक_ïे करने का ही है। प्रत्येक राजनैतिक दल किसी न किसी वर्ग विशेष के तथाकथित तुष्टिïकरण में लगा ही हुआ है। अब चाहे इसे देश व समाज के हित के चश्मे से देखा जाए अथवा समाज में वैमनस्य फैलाने वाले शब्द 'तुष्टिïकरणÓ के चश्मे से। सच्चाई तो यही है कि भारत में रहने वाले सभी धर्मों व जातियों तथा समस्त क्षेत्र व वर्ग के लोगों को हर प्रकार से संतुष्टï रखने की भारत सरकार की व राज्य सरकारों की $िजम्मेदारी भी है तथा यह उन सब का अधिकार भी। इसलिए समुदाय विशेष के तुष्टिकरण की ही $खातिर किसी विशेष नेता या विशेष दलों पर ही तुष्टिïकरण का आरोप मढऩा हरगिज़ मुनासिब नहीं। परंतु सच तो यही है कि सभी राजनैतिक दल किसी न किसी का कथित तुष्टिïकरण समय-समय पर करते ही रहते हैं। अत: इन राजनैतिक हथकंडों को तथा भारत में रहने वाले किसी भी वर्ग विशेष संबंधी कल्याणकारी योजनाओं व नीतियों को तुष्टिïकरण कहने के बजाए राष्टï्र कल्याण हेतु उठाया गया $कदम मानना ही बेहतर होगा।
समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह यादव ने पिछले दिनों भारतीय मुसलमानों से इस बात के लिए क्षमा मांगी है कि उन्होंने $गलती से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से राजनैतिक दोस्ताना बढ़ाने की कोशिश की थी। उन्होंने यह भी कहा है कि वे हमेशा मुसलमानों के मान-सम्मान के लिए संघर्ष करते रहेंगे। $गौरतलब है कि कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के उस पूर्व मुख्यमंत्री का नाम है जिसने मुख्यमंत्री होते हुए 6 दिसंबर 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस में अपनी अहम भूमिका अदा की थी। इसके बाद विशेष कर उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाता मुलायम सिंह यादव के साथ हो लिए थे। क्योंकि 1990 में 1992 जैसी ही परिस्थितियों में मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश का मुख्यमंत्री होते हुए अपने कर्तव्य का तथा भारतीय संविधान की रक्षा का ब$खूबी निर्वहन करते हुए अतिवादी भीड़ को इसी विवादित स्थल के समीप फटकने तक नहीं दिया था। उसी समय से मुस्लिम समुदाय मुलायम सिंह यादव को अपने नेता के रूप में देखने लगा था। 1992 की घटना ने कांग्रेस पार्टी से भी मुसलमानों का विश्वास उठा दिया था। लगभग दो दशक की इस उतार-चढ़ाव भरी राजनीति के बाद गत् संसदीय चुनावों में मुलायम व कल्याण ने आपस में गलबहियंा कर लीं थीं। यह बात मुस्लिम समाज को नागवार गुज़री। और इसका ख़्ामियाज़ा मुलायम को भुगतना पड़ा। शायद अब उन्हें यह एहसास हुआ है कि उनका यह $कदम सही नहीं था। और इसी कारण मुलायम ने मुसलमानों से मा$फी मांगने जैसा राजनैतिक अस्त्र एक बार फिर चलाया है।
, मुलायम के इस मा$फीनामे पर कुछ मुलायम विरोधी राजनैतिक लोगों द्वारा यह कहा जा रहा है कि वे तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे हैं। भारतीय राजनीति में अक्सर कई राजनैतिक दल किसी न किसी अन्य दलों पर तुष्टिïकरण का आरोप लगाते रहते हैं। देश की आ$जादी से लेकर अब तक यह सिलसिला जारी है। क्यों लगाए जाते हैं तुष्टिïकरण के आरोप? क्या होता है तुष्टिïकरण? कौन सा राजनैतिक दल करता है तुष्टिïकरण की राजनीति और कौन सा राजनैतिक दल तुष्टिïकरण नहीं करता? क्यों की जाती है तुष्टिïकरण की राजनीति? भारतीय समाज अक्सर इसी पसोपेश में दिखाई देता है। मुख्य रूप से राष्टï्रीय स्तर पर यह आरोप भारतीय जनता पार्टी तथा उसके सहयोगी राष्टï्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा कांग्रेस, वामपंथी दलों तथा धर्म निरपेक्षता पर विश्वास करने वाले संगठनों पर भारतीय मुस्लिम समाज को लेकर लगाया जाता है। इन हिन्दुत्ववादी संगठनों का आरोप है कि भारत में धर्म निरपेक्षता की राजनीति करने वाले अधिकांश राजनैतिक संगठन मुस्लिम तुष्टिïकरण की राजनीति करते हैं।
दूसरी ओर इन धर्म निरपेक्ष राजनैतिक संगठनों का मानना है कि उनके द्वारा उठाए गए ऐसे $कदम जिससे मुस्लिम समाज का कल्याण होता हो, वे केवल मुस्लिम समाज के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था व विकास के लिए लाभकारी होते हैं। परन्तु हिन्दुत्ववादी संगठन कहते हैं कि ऐसा नहीं है बल्कि मात्र अल्पसंख्यक मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही तुष्टिïकरण की राजनीति की जाती है। भारतीय मुस्लिम समाज के विकास एवं कल्याण संबंधी उठाए गए सभी $कदम इन्हें 'मुस्लिम तुष्टिïकरणÓ के पक्ष में उठाए जाने वाले $कदम न$जर आते हैं। सवाल यह है कि देश में क्या कोई ऐसा राजनैतिक संगठन भी है जो भारतीय मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए या किसी न किसी धर्म जाति या किसी वर्ग विशेष के मतों को प्राप्त करने के लिए तथाकथित तुष्टिïकरण की राजनीति न करता हो? तुष्टिïकरण का आरोप लगाने वाले संगठन स्वंय भी तुष्टिïकरण की नीतियों पर चलते देखे जा सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर भारतीय जनता पार्टी द्वारा ही गुजरात दंगों के बाद भारत के राष्टï्रपति पद हेतु डा. ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम का प्रस्ताव किया गया था। यदि यह प्रस्ताव भारतीय जनता पार्टी द्वारा किया जाए तो भाजपा ऐसे प्रस्ताव द्वारा अपना कथित धर्म निरपेक्ष चेहरा दुनिया को दिखाना चाहती है। परन्तु यदि यह प्रस्ताव कांग्रेस या वामपंथी दलों, समाजवादी पार्टी अथवा राष्टï्रीय जनता दल जैसे संगठनों द्वारा पेश किया जाता तो यही भाजपा या उसके सहयोगी हिन्दुत्ववादी संगठन यह कहते देर नहीं लगाते कि यह तुष्टिïकरण की राजनीति है। इसी उदाहरण में एक और पहलू दिखाई देता है। कलाम की राष्टï्रपति पद की उम्मीदवारी का विरोध केवल उन्हीं वामपंथी दलों द्वारा किया गया जिन पर हमेशा ही यही भाजपा व उनके सहयोगी हिन्दुत्ववादी संगठन मुस्लिम तुष्टिïकरण की राजनीति करने का आरोप लगाते रहते हैं।आ$िखर तब कहां चला गया था वामपंथियों पर लगने वाला मुस्लिम तुष्टिïकरण का आरोप?
इस लिहा$ज से क्या भाजपा द्वारा कलाम को राष्टï्रपति पद के लिए प्रस्तावित करना केवल भारतीय मुसलमानों के तुष्टिïकरण के लिए उठाया गया $कदम नहीं कहा जा सकता?
भाजपा ने केंद्र में सत्तारूढ़ रहने के दौरान मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हितों के लिए कई महत्वपूर्ण $कदम उठाए। बिना किसी जनाधार वाले तथा अत्यन्त अल्प राजनैतिक अनुभव रखने वाले दो-दो युवा मुस्लिम नेताओं को वाजपेयी की सरकार में मंत्री बनाकर रखा गया। भारतीय मुस्लिम राजनीति में अपनी अहम पहचान रखने वाले आरि$फ मोहम्मद $खां व नजमा हैपतुल्ला जैसे नेताओं को भाजपा ने अपनी पार्टी में किस म$कसद के तहत आमंत्रित किया था। भाजपा ने ही अपने शासन काल में हज यात्रियों के लिए कई स्थानों से विशेष विमान उड़ाए जाने की व्यवस्था की थी। दो दशकों से लखनऊ में बंद पड़ा ऐतिहासिक मोहर्रम का जुलूस भाजपा ने पुन: निकलवाना शुरु किया था। भाजपा द्वारा इस्लामी विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन को न सि$र्फ पदमश्री से नवा$जा गया बल्कि उन्हें भाजपा हेतु वोट मांगने के लिए भी प्रयोग में लाया गया। बशीर बद्र जैसे मशहूर शायर को भाजपा द्वारा मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी का सचिव बनाया गया। उसी दौरान अटल हिमायती कमेटी नामक एक मुस्लिम ग्रुप तैयार किया गया तथा इसे मुस्लिम क्षेत्रों में भेजकर मुस्लिम वोट मांगे गए। वाजपेयी व लाल कृष्ण अडवाणी जैसे वरिष्ठï पार्टी नेताओं को रो$जा इ$फ्तार की पार्टियों का आयोजन करते व इनमें शरीक होते भी देखा गया। आख़्िार मुस्लिमों के प्रति दिखाई गई इस 'दरियादिलीÓ को क्या नाम दिया जाए? परन्तु जब ऐसे $कदम भाजपा द्वारा उठाए जाते हैं तब अन्य धर्म निरपेक्ष राजनैतिक दल इन पर तुष्टिïकरण की राजनीति करने का आरोप नहीं लगाते।
मायावती द्वारा उत्तर प्रदेश में अपने शासन के दौरान कई शहरों व $िजलों के नाम बदल दिए जाते हैं । इनमें से अधिकांश का नाम दलित नेताओं, दलित समाज के प्रेरणा स्रोत व आदर्श समझे जाने वाले महापुरुषों के नाम पर रखे जाते हैं। मायावती ने दलित समाज के कल्याण हेतु उत्तर प्रदेश में तमाम योजनाएं बनाई हैं । आ$िखर इनको केवल इसी न$जरिए से कैसे देखा जा सकता है कि यह सब कुछ मात्र तुष्टिïकरण के लिए ही उठाए जाने वाले $कदम हैं? आख़्िार इनमें निहित, समाज, राज्य व देश के कल्याणकारी पहलुओं को क्योंकर न$जरअन्दा$ज किया जाता है? क्या पंजाब में राजनीति करने वाले नेता या संगठन पंजाबियों या सिक्खों के कल्याण की बात नहीं करते? एक जाट नेता क्या जाटों के हितों की बात नहीं सोचता? क्या तमिल, बंगला, इसाई आदि समाज के बीच कार्य करने वाले लोग या इनसे जुड़े राजनैतिक संगठन, इनके हितों के लिए प्रयत्नशील नहीं रहते? स्वयं भारतीय जनता पार्टी द्वारा ही बार-बार आ$िखर हिंदुत्व तथा राम मन्दिर का मुद्दा क्योंकर उठाया जाता है? देश के किन मतदाताओं को केंद्र में रखकर ऐसे संवेदनशील मुद्दों के नाम पर वोट मांगे जाते हैं?भाजपा द्वारा कश्मीर से धारा 370 हटाया जाना, समान आचार संहिता की बात करना तथा राम जन्मभूमि मुद्दे उठाना भी उस न$जरिए से तो तुष्टिïकरण की ही राजनीति कही जाएगी?
वास्तव में यह तो नेताओं की अपनी स्वार्थपूर्ण मंशा पर निर्भर है कि वे कब, किसी समाज के पक्षधर बन बैठें और कब किसके किन $कदमों को तुष्टिïकरण के $कदम बताने लग जाएं। दरअसल यह सारा का सारा खेल मात्र वोट बैंक इक_ïे करने का ही है। प्रत्येक राजनैतिक दल किसी न किसी वर्ग विशेष के तथाकथित तुष्टिïकरण में लगा ही हुआ है। अब चाहे इसे देश व समाज के हित के चश्मे से देखा जाए अथवा समाज में वैमनस्य फैलाने वाले शब्द 'तुष्टिïकरणÓ के चश्मे से। सच्चाई तो यही है कि भारत में रहने वाले सभी धर्मों व जातियों तथा समस्त क्षेत्र व वर्ग के लोगों को हर प्रकार से संतुष्टï रखने की भारत सरकार की व राज्य सरकारों की $िजम्मेदारी भी है तथा यह उन सब का अधिकार भी। इसलिए समुदाय विशेष के तुष्टिकरण की ही $खातिर किसी विशेष नेता या विशेष दलों पर ही तुष्टिïकरण का आरोप मढऩा हरगिज़ मुनासिब नहीं। परंतु सच तो यही है कि सभी राजनैतिक दल किसी न किसी का कथित तुष्टिïकरण समय-समय पर करते ही रहते हैं। अत: इन राजनैतिक हथकंडों को तथा भारत में रहने वाले किसी भी वर्ग विशेष संबंधी कल्याणकारी योजनाओं व नीतियों को तुष्टिïकरण कहने के बजाए राष्टï्र कल्याण हेतु उठाया गया $कदम मानना ही बेहतर होगा।
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